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सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पुरातन जैनवाक्य सूची, पृष्ठ-१४४। १००. सन्मति प्रकरण, पृष्ठ-१३। १०१. सन्मति प्रकरण, पृष्ठ १४-१६। । १०२. न्यायावतारवार्तिकवृत्ति 'सिंघी जैनशास्त्र शिक्षा पीठ, भारतीय विद्याभवन,
बम्बई, पृष्ठ २८७-८९। १०३. न्यायावतारवार्तिकवृत्ति, सम्पा० पं० दलसुख मालवणिया, सिंघी जैन
शास्त्र विद्यापीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, पृष्ठ २८७-८९। १०४. तुलना करेंआज्ञावान सर्वत्र व्यवच्छेद: फलं न सत् । - प्रमाण समु०, २३।
एवं प्रमाणस्य फलं साक्षादज्ञानविनिवर्तनम् । – न्यायावतार, २८। १०५. तुलना करें
अनेकान्तात्मकं वस्तु गोचरः सर्वसंविदाम् । - न्यायावतार, २९।
गोचरसाम्य ....... नान्य यथोक्त मनैकान्तं सर्वसिद्धि । - प्रमा० समु०,२७। १०६. न्यायावतारवार्तिकवृत्ति, पृष्ठ २९१। १०७. एक व्यक्तिगत साक्षात्कार के आधार पर। १०८. असंग, अभिधर्मसमुच्चय, संपा० प्रह्लाद प्रधान, विश्वभारती शांतिनिकेतन,
१९५० सांकथ्य परिच्छेद, पृष्ठ १०५। 109. Vasubandhu was born one year after his older brother Asanga
become a Buddhist monk. Tārānāth, History of Buddhism in India, (Geschichte des Buddhism in Indien), (G.tr. Arton schiefner), reprint Suzuki Research Foundation, Tokyo, p. 118. देखें- द्वादशारंनयचक्रं न्यायागमनानुसारण्या वृत्या समलंकृतम् भाग, १,२,३ प्रका० जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १९९६, जिसमें सन्मति की गाथाएँ, क्रमश: १/३१ पृष्ठ-२, ३/४७ पृष्ठ-७, १/२८ पृष्ठ-३५, ३/५९ पृष्ठ-८४, १/४ पृष्ठ-११५, ३/५८, पृष्ठ-४९६, १/६ पृष्ठ-५९६, १/४७ पृष्ठ-५८५, ३/४५ पृष्ठ-७३६, १/५ पृष्ठ-७३७-७६३, १/१२ पृष्ठ-७९३, १/३ पृष्ठ-८७६, ३/६९ पृष्ठ-८७६ पर उद्धृत हैं। ।
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