________________
सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
रहा होगा। और इस आधार पर सिद्धसेन का समय पांचवी शताब्दी के आस-पास ठहरता है।
४
परम्परा के अनुसार जब हम आचार्य सिद्धसेन के कालनिर्णय पर विचार करते हैं, तो देखते हैं कि सभी परम्पराएँ सिद्धसेन को विक्रम का समकालीन एवं उज्जयिनी का निवासी मानती हैं परन्तु ये विक्रम कौन थे ? यह भारतीय इतिहास का विवादग्रस्त प्रश्न है। इससे सिद्धसेन के सही समय निर्धारण में कोई सहायता नहीं मिलती। स्व० डॉ० सतीशचन्द्र विद्याभूषण १४ विक्रम की सभा के नवरत्न वाले बाईसवें प्रकरण के दसवें श्लोक में आने वाले 'क्षपणक' को सिद्धसेन दिवाकर मानकर और विक्रम को मालवा का यशोधर्मदेव समझकर सिद्धसेन का काल ई०५३० के आस-पास रखते हैं। परन्तु यह तथ्य निम्न आधारों पर अतर्कसंगत लगता है - प्रथमत:, जैसा कि पूर्व पंक्तियों में बताया गया है कि विक्रम नाम का राजा कब हुआ यह प्रश्न विवाद से परे नहीं है। इस सन्दर्भ में श्री कल्याण विजय जी ने 'नागरी प्रचारणी पत्रिका' में प्रकाशित अपने वीरनिर्वाण विषयक लेख में कितने ही विचारणीय प्रमाण देकर जैनों में प्रसिद्ध विक्रमादित्य, बलमित्र हैं ऐसा कहा है; और बलमित्र ने शकों को हराकर तथा गर्दभिल्ल को मारकर वीर निर्वाण सं०४५३ में उज्जयिनी की गद्दी ली थी और १७ वर्ष के पश्चात् अर्थात् वीर निर्वाण सं०४७० में विक्रम संवत् चलाया था, ऐसा वे लिखते हैं। इस आधार पर सिद्धसेन प्रथम शती के विद्वान् सिद्ध होंगे किन्तु यह मत समीचीन नहीं है, तात्पर्य यह कि विक्रम से उनकी समकालीनता सिद्धसेन दिवाकर का समय निश्चित करने में उपयोगी नहीं हो सकती । १५
दूसरे, डॉ० विद्याभूषण नवरत्न वाले ज्योतिर्विदाभरण १५ के श्लोक को ऐतिहासिक मानकर कालिदास आदि नौ रत्नों को समकालीन मानते हैं किन्तु इसका भी कोई प्रमाण नहीं मिलता।
तीसरे, क्षपणक से सिद्धसेन दिवाकर ही उद्दिष्ट हैं, यह सुनिश्चित प्रमाणों के अभाव में अतर्कसंगत एवं नितान्त कल्पित लगता है।
७
इस सन्दर्भ में डॉ० कुमारी शार्लोट क्राउजे ने विक्रम स्मृति ग्रन्थ में गहन विचार किया है। सिद्धसेन दिवाकर ने अपनी गुणवचनद्वात्रिंशिका' में जिस पराक्रमी राजा के गुणों का वर्णन किया है, वह कौन हो सकता है, इसकी सूक्ष्म समीक्षा करने पर वह ऐसे निर्णय पर आई हैं कि वह राजा समुद्रगुप्त ( ई०३३०-३७५) हैं। पं० सुखलाल संघवी और बेचरदासजी ने संवत्सर प्रवर्त्तक विक्रमादित्य एवं सिद्धसेन दिवाकर का समकालीन होना असम्भव बताया है" और सिद्धसेन को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org