Book Title: Shravakachar Sangraha Part 1
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 13
________________ श्रावकाचार-संग्रह oror Mor Morrorrowroor Mor सम्यग्दर्शनके २५ दोषोंका वर्णन १५३ सम्यग्ज्ञानका स्वरूप १५४ सम्यक्चारित्रका स्वरूप और भेद अष्ट मूलगुणोंका वर्णन १५६ श्रावकके बारह व्रतोंका वर्णन १५९ अहिंसावतका वर्णन और रात्रिभोजनका निषेध / १६० सन्धानक एवं द्विदल वस्तु-भक्षणका निषेध १६१ मैत्री प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य भावनाका स्वरूप प्रायश्चित्तका विधान, वा प्रायश्चित्त देनेका अधिकारी १६३ अदत्तादानका निषेध एवं अचौर्याणुव्रतका स्वरूप १६४ सत्याणुव्रतका स्वरूप वर्णन ब्रह्मचर्याणुव्रतका स्वरूप वर्णन १६७ परिग्रह परिमाणाणुव्रतका स्वरूप वर्णन गुणवतोंका वर्णन १७० शिक्षाव्रतोंका वर्णन सामायिक शिक्षाव्रतके अन्तर्गत देवपूजाका विस्तृत वर्णन १७२ अतदाकार पूजनके अन्तर्गत दर्शन, ज्ञान चारित्रभक्ति, अर्हत् सिद्ध आचार्य चैत्य और शान्तिभक्तिका वर्णन १७५ तदाकार पूजनके अन्तर्गत प्रस्तावना, पुराकर्म, स्थापना-स्तवन, अर्चन,स्तवन, जप, ध्यान, और श्रुतदेवताराधनाका वर्णन १८० ध्यानके अन्तर्गत आज्ञाविचयादि धर्मध्यानोंका विस्तृत वर्णन १९३ प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतका वर्णन २१३ भोगोपभोग शिक्षावतका वर्णन अतिथिसंविभाग शिक्षाक्तका वर्णन २१४ श्रुत-रक्षाके लिए श्रुतधरोंकी रक्षाका निर्देश २२१ ग्यारह प्रतिमाओंका संक्षिप्त वर्णन २२३ जितेन्द्रिय, श्रमण, क्षपण आदि नामोंकी सार्थकताका वर्णन सल्लेखनाका वर्णन गृहस्थके दैनिक षट् आवश्यकोंका वर्णन चार अनुयोगोंका वर्णन २३० कषायोंका वर्णन और उनके जीतनेका उपदेश २३१ वैराग्य, भय और नियमके उपदेशपूर्वक ग्रन्थका उपसंहार २३४ चारित्रसार-गत श्रावकाचार २३५-२६२ मंगलाचरण और धर्मका स्वरूप २३५ श्रावककी ११ प्रतिमाओंका नाम-निर्देश २१४ २२३ ० २३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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