Book Title: Shravak Dharma Anuvrata
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 10
________________ श्रावक धर्म-अणुव्रत ३ होने पर भी बारह व्रत पालते थे और परिग्रह परिमाण वाले भी थे। जिनका वर्णन उपासक दशासूत्र में है और कहा है कि यह सारे ही मोक्षगामी आत्मा हुए हैं । परिग्रह का विषय सूक्ष्म दृष्टि से और स्थूल दृष्टि से समझाया और यह बता दिया कि व्रत लेने वाला सद्गति पाता है। वर्तमान काल के धनपति ऐसे व्रतों को कम लेते हैं। उन्हें तृष्णा इतनी सताती है कि वह मामूली त्याग करने को भी तैयार नहीं होते । जबकि मध्यम वर्ग के लोग व्रत लेते हैं और सुख पूर्वक उसका पालन करते हैं । पहिला स्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत-श्रावक संसारी होने से दया के प्रकार बीस विश्वा बताये जिनमें से सवा विश्वा पाल सकते हैं। हिंसा करना नहीं, दूसरे से कराना नहीं और जो करता हो उसकी प्रशंसा करना नहीं। दूसरा स्थूल मृषावादविरमण व्रत-पालते चार प्रकार के असत्य कथन करने का सर्वथा त्याग करना बताया। तीसरा स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत-चोरी नहीं करना, जेब नहीं काटना, ताले तोड़ धन हरण नहीं करना, खात नहीं देना आदि आदि का त्याग करना बताया। चौथा ब्रह्मचर्यव्रत जिसमें स्वदारा सन्तोषी,परदारा Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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