Book Title: Shravak Dharma Anuvrata Author(s): Chandanmal Nagori Publisher: Chandanmal NagoriPage 65
________________ श्रावक धर्म - अणुव्रत गोरीकर्णिका ( १७ ) कोमल पत्ते (१८) खरसैया (१६) थेक की भाजी (२०) हरी मेथी (२१) लुली के झाड की छाल (२२) खीलोडा (२३) अमृतवेल (२४) मूला कंड (२५) भूमिफोडा (२६) कोमल अंकुर (२७) बाथला के पत्ते (२८) सुवेर बेल (२६) पालका के पत्ते (३०) कुणी बली (३१) रतालु (३२) पिंडालु. पन्द्रह कर्मादान ५८ पन्द्रह कर्मादान त्याग करने योग्य होते हैं जिनका वर्णन गुरु महाराज से समझ लेना चाहिए । जीलोतरी त्याग लीलोतरी अर्थात् बनस्पति लाखों की संख्या में है, मनुष्य के सारी वनस्पतियां भोग में नहीं आती, बहुत कम वनस्पति काम में आती है जिनका प्रमाण कर अधिक बनस्पति का त्याग करना चाहिए । यदि त्याग न किया जाय तो क्रिया आती है । कहने वाले कहेंगे कि जो वस्तु काम में न आई हो उसकी क्रिया हमें किस प्रकार लगती है ? उत्तर स्पष्ट है कि मनुष्य जन्म पाने से पहले Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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