Book Title: Shravak Dharma Anuvrata
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori
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२२
श्रावक धर्म-अणुव्रत
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वर्णन में स्थावर जङ्गम सारी वस्तुएँ आ जाती हैं । इस व्रत को लेने से तृष्णा-लोभ पर अंकुश आ जाता है । यदि सृष्णा पर काबू नहीं आया है तो स्वर्ग का राज पाने तक की भावना हो जाती है । लोभ संज्ञा तीव्र होने से सद्गति नहीं मिलती। त्याग मूर्छा सहित हो वही काम श्राता है । जिस त्याग में मूर्छा नहीं है वैसा त्याग तो केवल चेष्टा रूप होता है। और मूर्छा सहित त्याग हो वह सोना में सुगंध जैसा माना गया है। इसलिये समझाया है कि जितना धन वैभव तुम्हारे पास हो उस से अधिक पाने की इच्छा जहां तक ठहरती हो ठहरा लो,
और उस से अधिक प्राप्त हो जाय तो धर्म कार्य में व्यय करने का नियम ले लो। इस तरह करने से लोभवृत्ति पर अंकुश लग जायगा और संतोष की प्राप्ति होगी। इसलिये इस व्रत द्वारा परिग्रह का परिमाण करना चाहिये । नकद रुपया धन, धान्य, सोना, चांदी, जवाहरात, जायदाद, बरतन, फर्नीचर, आभूषण, जेवर, पशु, खेत, कूवा, बाग आदि की कीमत लिख कर एक अङ्क बना लीजिये, यदि इस तरह करने में झंझट मालूम हो तो नवनिध परिग्रह का समुच्चय प्रमाण अङ्क संख्या में
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