Book Title: Shravak Dharma Anuvrata
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 45
________________ S श्रावक धर्म-अणुव्रत पांचवां स्थूल परिग्रहपरिमाण व्रत परिग्रह का प्रमाण करने से आशा-तृष्णा सीमा में आ जाती है। और एक प्रकार से अधिक प्राप्ति पर मूर्छा हो जाती है, इसलिये इस व्रत द्वारा परिग्रह का परिमाण करना चाहिए । रोकड, धन, धान्य, सुवर्ण, चांदी, जवाहरात, जायदाद, बरतन, फर्नीचर, आभूषणजेवर, पशु, खेत, कूवा, बाग आदि की कीमत लिख एक अंक बना लीजिये, यदि इस प्रकार करने में झंझट मालूम होती हो तो नवनिध परिग्रह का समुच्चय प्रमाण अंक संख्या में कर लें और भविष्य के लिये सोचते रहें कि विशेष उत्पन्न हो जाय तो शुभ मार्ग में व्यय कर देना, इस व्रत में भी पांच अतिचार लगना संभव है। (१) धन धान्य परिमाणातिक्रम-नियम से अधिक धन की प्राप्ति होने पर पुत्र स्त्री के नाम करदेने से अतिचार लगता है । (२) क्षेत्र परिमाणातिक्रम-खेत आदि नियम से अधिक रखने से अतिचार लगता है । (३) सोना, चांदी आदि नियम से अधिक रखने से अतिचार लगता है। (४) तांबा, पीतल आदि धातु के बर्तन अधिक रखने Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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