Book Title: Shravak Dharma Anuvrata
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 31
________________ श्रावक धर्म-अणुव्रत - देख सहस्रावधि लाख या लाखों तक जितना परिग्रह रखना हो-रख लें, और उस से अधिक का त्याग करना है, जो धन अभी तक पाया नहीं है और भविष्य में प्राप्त हो या न हो संदेह युक्त विषय है तथापि ऐसे धन का त्याग भी लाभ पहुंचाता है, और समझने वाले पुरुष आसानी से ले सकते हैं। ___ इस प्रकार के पांच अणुव्रत हैं जिनके तीन गुणत्रत हैं, (१) दिक्परिमाण (२) भोगोपभोग पदार्थ का परिमाण (३) अनर्थ दण्ड विरमण, यह तीनों व्रतधारी मनुष्य में निवास होनी चाहिये दिक् परिमाण से यह बताया है दस दिशाओं में कहां तक कितनी दूर तक जाना जिस का परिमाण करलें और यात्रा के निमित्त विशेष जाना पडे तो जयणा। सातवां व्रत और दूसरा गुणव्रत-भोग-उपभोग में आने वाली वस्तु पदार्थ आदि का परिमाण करना और इसके चौदह नियम हैं जिन का नित्य स्मरण कर निज के लिये नित्य का नियम बना लेना, आठवां व्रत और तीसरा गुण अनर्थ दंड विरमण है जिस की व्याख्या आगे बताई जायगी,गुणव्रत के बाद चार शिक्षा व्रत हैं शिक्षा का मतलब यह है कि ग्रहण करना सशिक्षा पाकर उसका Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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