Book Title: Shravak Dharma Anuvrata Author(s): Chandanmal Nagori Publisher: Chandanmal NagoriPage 22
________________ श्रावक धर्म-अणुव्रत तीसरा स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत-यह चोरी का विषय है, न कोई चोरी करना चाहता है, और न चोर कर्म करने वाले की प्रशंसा करता है। साहूकार और श्रावक वर्ग तो वैसे भी चोर कर्म नहीं करते तो फिर व्रत लेने में क्या नुकसान है ? आप व्रत ग्रहण कर लेंगे तो कई बार अनायास आने वाली आपत्ति से बच जांयगे। इस व्रत को लेते समय यह प्रतिज्ञा करनी होगी, कि चोरी नहीं करना, खात नहीं देना, ताला तोड़ धन हरण नहीं करना, जेब नहीं काटना, लटना नहीं, किसी की भूली हुई वस्तु का मालिक नहीं बनना, और राज दण्ड होने जैसा चोरी का कार्य नहीं करना। आप सोच लें भले आदमी के लिए यह व्रत पालना कठिन बात नहीं होगी। इस तरह से इस व्रत के पालने में भी पांच अतिचार लगते हैं (१) चोर से जान बूझ कर चोरी की वस्तु ली हो तो, (२) चोर को चोर कर्म करने में सहायता दी हो तो (३) चोरी वस्तु का रूप परिवर्तन कर चोर के माल को शुद्ध बनाने से (४) राज्य के विरुद्ध ऐसे चोरी जैसे कार्य किये हों तो, और (५) नाप, तोल बाट वजन बताने वाले तोल में कम ज्यादे रखे हों तो अतिचार लगता Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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