Book Title: Shravak Dharma Anuvrata
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 16
________________ श्रावक धर्म-अणुव्रत ६ अथवा अन्य कई प्रकार की आपत्तियां आ जाय तो भी सर्व प्राप्ति के मूल रूप धर्म की आराधना में कमी नहीं करना चाहिए । धर्माराधन नित्य करते रहना और निजका चारित्र शुद्धमान बनाना चाहिए। स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत का यह मतलब है कि किसी जीव की हिंसा नहीं करना, दूसरे से नहीं कराना और जो करता हो उसकी प्रशंसा नहीं करना, यही प्राणातिपात विरमण के नियम हैं। और इस तरह के नियमों का पालना कठिन बात नहीं है । श्रावक तो जन्म जात से दयावान होता है। हिंसा के कार्य देखने मात्र से ही उसे घृणा आती है, इस तरह की प्रकृति जिस श्रावक की हो उसको प्राणातिपात विरमण व्रत का बहुमान होता है । अतः श्रावक कुल में जन्म पाया हो तो यह पहला स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत अवश्य लेना चाहिए। इस व्रत को अङ्गीकार करने वाला व्यवहार के कई अपराधों से बच जाता है । जिसके थोड़े से उदाहरण देखियेगाः (१) किसी को गालियां देकर दिल दुखाया हो तो धारा ३५२ में उसको दो वर्ष का कारावास होता है (२) पब्लिक मार्ग पर जीव का बध करने वाले को धारा २०६ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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