Book Title: Shravak Dharma Anuvrata Author(s): Chandanmal Nagori Publisher: Chandanmal NagoriPage 15
________________ श्रावक धर्म-अणुव्रत करता है । ब्रह्मचर्य पालता हो, महाव्रत लेने की भावना वाला हो ओर पापकृत्य-व्यवसाय का त्यागी हो, एकादश पडिमा धारक हो वही उत्कृष्ट श्रावक होता है। वैसे देश विरति श्रावक में रौद्रध्यान जिसके चार भेद हैं, मंदगति पर होते हैं, आर्तध्यान के चार भेद हैं, वह देश विरति श्रावक में रहते हैं। परन्तु शुद्धता आती है तब वह भी मंद होजाते हैं और इनकी मंदता से धर्म ध्यान का उदय होता है। वैसा यह भी बताया है कि धर्मध्यान देश विरति में उत्कृष्ट नहीं होता । उत्कृष्ता आते ही वह महाव्रत ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार से श्रावक कर्तव्य कई प्रकार से बताया गया है । और भाव श्रावक के और भी गुण होते हैं जिनका वर्णन सूत्रों में है । इस प्रकार धर्म सञ्चय करने वाले पुरुष के विषय में कहा है कि पुसां शिरोमणीयन्ते धर्मार्जन परानरा। आश्रीयन्ते च सम्पद्भिर्लताभिरिव पादपा ।। भावार्थ-धर्म सञ्चय करने वाले पुरुष शिरोमणि कहे जाते हैं और जिस प्रकार से लताएं वृक्ष का आश्रय लेती है, तदनुसार लक्ष्मी और सम्पत्ति धर्मवान पुरुष का आश्रय लेती है। अतः धन की कमी हो जाने से Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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