Book Title: Shravak Dharma Anuvrata
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 13
________________ श्रावक धर्म - अणुव्रत का लाभ होगा और नियम ग्रहण करने वाले की भी यही भावना होती है कि बचे जितना बचा लूं । यहां शङ्का समाप्त हुई । ६ केवलज्ञान पान तक के मार्ग बताये और कहा कि बारह व्रतधारी हो और उसमें इक्कीस गुणों का निवास हो वह (१) तुच्छ स्वभावी न हो, (२) स्वरूपवान, (३) शान्त स्वभावी. (४) लोकप्रिय, (५) क्रूरतारहित, (६) शठतारहित, (७) दाक्षिण्यवान, (८) लज्जावान, (६) दयावान. (१०) सौम्यदृष्टि, (११) गुणानुरागी, (१२) सुवार्ता करनेवाला, (१३) सत्यपक्षी, (१४) दीर्घदृष्टि, (१५) विशेषज्ञ, (१६) अपक्षपाती, (१७) ज्ञानवृद्ध, (१८) विनयवान, (१६) कृतज्ञ, (२०) परोपकारी और (२१) लब्धलक्ष गुण धारण करनेवाला हो, जिसको धर्मरत्न प्रकरण ग्रन्थ में और वृत्ति में वर्णन किया गया है । विशेष रूप से कहा है कि भाव श्रावक के क्रिया आश्रयी छह लक्षण होते हैं, जिनमें से प्रथम लक्षण में बारह व्रत का वर्णन किया है । दूसरे लक्षण में छह प्रकार के आचार का वर्णन है । तीसरे लक्षण में पांच प्रकार का गुणवान होने का बयान Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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