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श्रमणविद्या
सद्धम्मोपायन के रचयिता सिंहली स्थविर आनन्द थे, जो अभयगिरि कवि चक्रवर्ती आनन्द भी कहलाते थे । सद्धम्मोपायन की हस्तलिखित प्रति में ६२१ गाथा के अन्त में कहा गया है कि "इति भवन्त-आनम्वत्थेरेन कतं सद्धस्मोपायनस्य समाहरणं समत्त", इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह रचना भदन्त आनन्द महास्थविर की ही है । इसे डॉ. भरत सिंह उपाध्याय ने भी स्वीकार किया है। उन्होंने यह रचना अपने प्रिय सब्रह्मचारी बुद्धसोम (बुद्धसोमस्स पियसब्रह्मचारिनो) को भेंट करने के लिए और उन्हें भिक्षुत्व न छोड़ने की सलाह देने के लिए लिखी थी। परन्तु विमलाचरण लाहा ने 'हिस्ट्री ऑफ पालि लिट्रेचर' (के भाग-२ पृ० ६२६) में ब्रह्मचारी बुद्धसोम को इस ग्रन्थ का रचयिता मान लिया है जो हस्तलिखित प्रति के प्रमाण पर उचित नहीं जान पड़ता। वस्तुतः बुद्धसोम को तो भेंट करने के लिए यह रचना लिखी गई थी।
. सद्धम्मोपायन के रचनाकाल को लेकर विद्वानों में मतैक्य प्रतीत नहीं होता । प्रो० गायगर के अनुसार इसकी रचना चौदहवीं शताब्दी में हुई। परन्तु डॉ. भरत सिंह उपाध्याय इसकी रचना बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के आसपास मानते हैं, जो समीचीन जान पड़ता है।
कालान्तर में 'सद्धम्मोपायन' का स्वतन्त्ररूप से सुसम्पादित संस्करण प्रकाशित होना अपेक्षित है, जिसमें ग्रन्थ और ग्रन्थकार के विषय में भी विस्तार से विचार किया जाये।
-ब्रह्मदेव नारायण शर्मा
संकाय पत्रिका-१
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