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श्रमणविद्या
जिन मूलगुणों को धारणकर साधक श्रमणधर्म स्वीकार करता है उनका विवेचन आगे प्रस्तुत है।
मूलगुण
श्रमणाचार का प्रारम्भ मूलगुणों से होता है। आध्यात्मिक विकास के द्वारा मुक्ति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अपनी आचार संहिता के अन्तर्गत जिन गुणों को धारण करके जीवन पर्यन्त पूर्ण निष्ठा से पालन करने का संकल्प ग्रहण करता है, उन गुणों को 'मूलगुण' कहा जाता है । वृक्ष की मूल (जड़ या बीज) की तरह ये गुण भी श्रमणाचार के लिए मूलाधार हैं। इसीलिए श्रमणों के प्रमुख या प्रधान-आचरण होने से इनकी मूलगुण संज्ञा है। इन मूलगुणों की निर्धारित अट्ठाईस संख्या इस प्रकार है
"पंच य महव्वयाइ समिदीओ पंच जिणवरुद्दिट्ठा। पंचेविदियरोहा छप्पि य आवासया लोचो॥ अच्चेलकमण्हाणं खिदिसयणमदंतघंसणं चेव ।
ठिदिभोयणेयभत्तं मूलगुणा अट्टवीसा दु॥"" १. पांच महाव्रत :-हिंसाविरति (अहिंसा), सत्य, अदत्तपरिवर्जन (अचौयं)
___ ब्रह्मचर्य और संगविमुक्ति (अपरिग्रह)२ २. पांच समिति :-ईर्या, भाषा, एषणा, निक्षेपादान और प्रतिष्ठापनिका' ३. पांच इन्द्रियनिग्रह :---चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा और स्पर्श इन्द्रिय का निग्रह ४. छह आवश्यक :-समता (सामायिक), स्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान
और विसर्ग (कायोत्सर्ग)
मूलाचार १२-३, प्रवचनसार ३1८-९. हिंसाविरदी सच्चं अदत्तपरिवज्जणं च बंभं च । संगविमुत्ती य तह। महव्वया पंच पण्णत्ता ।। वही ११४. इरिया भासा एसण णिक्खेवादाणमेव समिदीओ। पदिठावणिया य तहा उच्चारादीण पंचविहा ॥ वही ११०. चक्खू सोदं घाणं जिब्भा फासं च इंदिया पंच। सगसंगविसएहितो णिरोहियव्वा सया मुणिणा ।। वही १।१६. समदा थवो य वंदण पाडिक्कमणं तहेव णादव्वं । पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि ।। वही १।२२.
संकाय पत्रिका-१
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