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श्रमणविद्या
उपर्युक्त दृष्टियों से तच्चवियारो का एक विशिष्ट महत्त्व है। वसुनन्दि ने यह एव ऐसी सरल और संक्षिप्त "मेनुअल ऑव ला" प्रस्तुत कर दी जो समाज के हर व्यक्ति को मौखिक याद रहना चाहिए। प्रथम चार प्रकरण व्यक्ति के भीतर सीधे झाँकते हैं, और आगे के सात प्रकरण उसके सामाजिक आचारण-व्यवहार में प्रतिविम्बित होते हैं। दूसरे शब्दों में प्रथम चार व्यक्ति का आध्यात्मिक धरातल निर्मित करते हैं, और आगे के सात उस पर व्यक्ति के सामाजिक जीवन का भव्य प्रासाद निर्मित करते हैं।
प्रस्तुत संस्करण
तच्चवियारो का प्रस्तुत संस्करण कई दृष्टियों से अपना विशेष महत्त्व रखता है। सबसे प्रमुख बात तो यही है कि प्राकृत का एक नया ग्रन्थ प्रथम बार प्रकाशित हो रहा है। इस संग्रह ग्रन्थ के प्रकाशन से वसुनन्दि के अध्ययन की नयी संभावनाएँ मुखरित होती हैं । वसुनन्दि के समय के विषय में जो प्रश्न उठाये गये हैं, भविष्य में उनके समाधान खोजने के प्रयत्न होना चाहिए। तच्चवियारो जैसे संक्षिप्त संग्रह ग्रन्थ पठन-पाठन की दृष्टि से विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। भविष्य के पाठ्यक्रमों में ऐसे ग्रन्थों का समावेश किया जाना चाहिए।
प्राचीन वाङ्मय के अप्रकाशित ग्रन्थों के सम्पादन और प्रकाशन की शृंखला में सत्यशासन-परीक्षा, कर्मप्रकृति, प्रमेयकण्ठिका, परमागमसारो के बाद एक और नयी कड़ी जोड़ने का यह मेरा विनम्र प्रयत्न है। ज्ञान का क्षेत्र अपार है। मुझे अपनी सीमाओं का परिज्ञान है। ऐसे में त्रुटियाँ सहज सम्भाव्य हैं। विद्वज्जगत ने जिस प्रकार मेरे पूर्व ग्रन्थो को सराहा, यदि ऐसा कुछ इस कृति का सौभाग्य हुआ तो मैं अपने प्रयत्नों को सार्थक मानूंगा।
प्रस्तुत कृति के सम्पादन में अनेक स्नेहीजनों का सहयोग और प्रेरणा रही है । इसके प्रकाशन से डॉ. प्रेमसुमन जैन उदयपुर, प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय, डॉ० फूलचन्द्र जैन को इस बात का विशेष संतोष होगा कि उनकी अनुज्ञा और सस्नेह आग्रह का पालन हो गया। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के अधिकारियों ने इसका प्रकाशन करके प्राच्यविद्या के कार्य को आगे बढ़ाया है । मैं सभी का हृदय से आभारी हूँ।
वाराणसी
गोकुलचन्द्र जैन
अध्यक्ष प्राकृत एवं जैनागम विभाग
संकाय पत्रिका-१
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