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1. सम्पादन परिचय
'तच्च वियारो' प्राकृत में निबद्ध एक जैन सिद्धान्त ग्रन्थ है । प्रस्तुत संस्करण में इस ग्रन्थ का प्रथम बार प्रकाशन किया जा रहा है । इसके पूर्व इसका प्रकाशन किसी भी लिपि या भाषा में नहीं हुआ ।
' तच्चवियारो' की कागज पर लिखी एक पाण्डुलिपि श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, व्यावर (राजस्थान) में सुरक्षित है । यह प्रतिलिपि किस प्राचीन पाण्डुलिपि से की गयी है, इसकी जानकारी प्रति में नहीं दी गयी है । व्यावर की यह प्रति प्रस्तुत संस्करण का मूल आधार है ।
प्रस्तावना
'तच्च वियारो' की अनेक गाथाएँ प्राकृत के ग्रन्थान्तरों में उपलब्ध हैं, और संयोग से ग्रन्थ प्रकाशित भी हैं । इन ग्रन्थों से भी 'तच्चवियारों' की गाथाओं को संशोधित करने में अत्यधिक सहायता मिली है ।
2. ग्रन्थपरिचय
'तच्च वियारो' में आठ अपभ्रंश दोहे तथा 287 प्राकृत-गाथाएँ हैं । ग्रन्थ मंगलाचरण के अतिरिक्त विषय के अनुसार 11 प्रकरणों में विभाजित है । प्रत्येक प्रकरण अपने में एक पूर्ण और स्वतन्त्र इकाई है । इस प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ संक्षेप में जैन सिद्धान्तविशेषकर धार्मिक दार्शनिक अवधारणाओं और उपासक या श्रावक की आचारसंहिता का प्रतिपादन करने वाला एक महत्त्वपूर्ण संग्रह ग्रन्थ है ।
नाम - ग्रन्थ के नाम का निर्देश प्रथम तथा 294 पद्य में इस प्रकार किया गया है
"वोच्छं तच्च वियारं
" एसो तच्चवियारो
उक्त दूसरी गाथा में ग्रन्थ के रचयिता का नाम इस प्रकार निर्दिष्ट है
"वसुनन्दिसूरिरइओ
।" ( गाथा 294 )
१६
। " ( गाथा 1 ) ।” ( गाथा 294 )
उपर्युक्त उल्लेखों से ग्रन्थ का प्राकृत नाम 'तच्च वियारो' अर्थात् तत्त्वविचार तथा इसके रचयिता का नाम वसुनन्दिसूरि स्पष्ट है ।
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संकाय पत्रिका - १
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