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फल कथन १८-१९ ।
दूसरा वर्ष २०, चण्डकौशिक प्रतिबोध २२, नाव से गंगा पार कर राजगृह की तरफ विहार २२-२३, गोशालक का स्वीकार २४ ।
तीसरा वर्ष २५, सुवर्णखल की तरफ विहार २५, ब्राह्मणगाँव होकर चम्पा को गये और चातुर्मास्य वहाँ किया २६ ।
चौथा वर्ष २६-२८, चंपा से कालाय, पत्तकालय आदिस्थानों में होते हुए कुमारासंनिवेश गये यहाँ गोशालक को पापित्य मिले २६२८, कुमारा से चोराक गये और पकड़े गये २७, चौथा वर्षावास पृष्ठचम्पा में किया २८ ।
पाँचवाँ वर्ष २८-३०, दरिद्दथेरों के देवल में रात्रिवास २८, कयंगला से श्रावस्ती होकर हलिढुक जाकर हलिद्दुक वृक्ष के नीचे रात्रिनिवास किया जहाँ आग से भगवान् के पैर झुलस गये २८-२९, आवत्ता, चोराय होकर कलंबुका गये जहाँ कालहस्ती ने बँधवा कर पिटवाया २९, राढ़भूमि में भ्रमण ३०, मलयदेश के भद्दिलपुर में चातुर्मास्य ३० ।
छठा वर्ष ३०, भद्दिलनगरी में कयलि से समागम, जंबूखंड होकर तंबाय गये जहाँ पार्वापत्य नन्दिषेण के शिष्यों से गोशालक का मिलना ३१, कूपिय संनिवेश में पकड़ा जाना ३१, गोशालक का जुदा विहार ३२, वैशाली होकर ग्रामाक गये जहाँ विभेलक यक्ष ने महिमा की ३१, शालिशीर्ष के बाहर कटपूतना का उपसर्ग ३१, छठ्ठा वर्षावास भद्दिया में ३२ ।
सातवाँ वर्ष ३२, वर्षावास आलंभिया में ३२ ।
आठवाँ वर्ष ३२, लोहार्गला में गिरफ्तारी ३३, पुरिमताल होकर राजगृह गमन और आठवाँ वर्षावास राजगृह में ३४ ।
नवाँ वर्ष ३३, अनार्यदेश में विहार और वर्षावास ३३,दसवाँ वर्ष ३४, तेजोलेश्या की साधनाविधि ३४, गोशालक का
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