Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 428
________________ विहारस्थल - नाम- कोष ली थी । महावीर के समय में कोटिवर्ष में किरात जाति का राज्य था और जब महावीर इधर विचरे थे तब यह प्रदेश अनार्य कहलाता था, परन्तु जैन सूत्रों में राठ देश की गणना आर्य देशों में की है इससे ज्ञात होता है कि यहाँ के राजा के महावीर का शिष्य होने के बाद जैन उपदेशकों के विहार से धर्म का प्रचार हो जाने से इसको आर्य देश मान लिया होगा । अथवा आर्य होने पर भी अनार्य लोगों की आबादी अधिक होने से महावीर के छद्मस्थ विहार के समय यह अनार्य कहलाता होगा । आज भी इस देश के वीरभोम आदि परगनों में संथाल आदि अनार्य जातियों की ही अधिक आबादी है । पौराणिक ग्रन्थों में कोटिवर्ष का नाम कर्णसुवर्ण लिखा है । यह देश आजकल के पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के आसपास था, ऐसा पुरातत्त्ववेत्ताओं का मत है । कोण्डिनायन चैत्य -- वैशाली के निकटवर्ती एक उद्यान का नाम । कोमिला - बंगाल प्रान्त के चटगाँव विभाग में गोमती नदी के किनारे टिपरा जिला का सदर स्थान कोमिला एक प्राचीन नगर है । पौराणिक काल के लेखों में इसका नाम 'कोमला' मिलता है । ३७१ महावीर के निर्वाण के बाद बहुत समय तक कोमिला की जैन धर्म के केन्द्रों में गणना रही है । कल्पसूत्र की थेरावली में जैनश्रमणों की प्राचीन शाखाओं के जो नाम निर्देश किये हैं, उनमें एक शाखा का नाम 'खेमिलिज्जिया' भी है । यह नाम वास्तव में 'खोमलिज्जिया' है जो 'कोमलिया' का प्राकृत रूप है और इसकी उत्पत्ति 'कोमला' से है । कोल्लाकसंनिवेश ( कोल्लागसंनिवेस ) यह संनिवेश वाणिज्यग्राम के समीप था । भगवान् महावीर ने दीक्षा के दूसरे दिन यहीं पारणा किया था । कोल्लाक संनिवेश ( २ ) यह संनिवेश राजगृह के निकट था जहाँ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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