Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 453
________________ ३९६ श्रमण भगवान् महावीर अर्थात् 'स्रोत' कहा है । आज भी उसके पास गर्म जल के कतिपय कुण्ड हैं जो भीतर के उष्ण जलस्रोतों से हम समय भरे रहते हैं । वैराट—विराट शब्द देखिये । वैशाली - मुजफ्फर जिला में जहाँ आज बेसाढपट्टी गाँव है वहीं पहले महावीर के समय की विदेह देश की राजधानी वैशाली नगरी थी । वैशाली और वाणिज्यग्राम की निश्रा में भगवान् महावीर ने कुल बारह वर्षा-चातुर्मास्य व्यतीत किये थे । वैशाली जैन धर्म के केन्द्रों में से एक थी । यहाँ का राजकुटुम्ब तथा नागरिकगण भी अधिकांश जैन थे । यही कारण है कि बौद्ध ग्रन्थकारों ने इस नगरी को पाखंडियों का अड्डा कहा है । नकशे के हिसाब से वैशाली चम्पा से वायव्य दिशा में १२५ मील और राजगृह से लगभग उत्तर में सत्तर मील की दूरी पर थी । शकटमुख उद्यान -- यह उद्यान पुरिमताल नगर के समीप था । यहाँ पर वग्गुर श्रावक ने महावीर की छद्मस्थावस्था में पूजा - महिमा की थी । शंखवन उद्यान - यह उद्यान आलंभिका के समीप था । भगवान् महावीर आलभिया जाते समय इसी उद्यान में ठहरते थे । शरवणग्राम- — यह ग्राम मंखली गोशाल का जन्म स्थान था और संभवतः मगधभूमि के ही किसी भाग में था । शाण्डिल्य (संडिल्ला ) - जैनसूत्रोक्त साढ़े पचीस आर्य देशों में से एक का नाम शाण्डिल्य था । इसकी राजधानी नन्दिपुर में थी । शाण्डिल्य देश कहाँ था, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है । हरकोई जिले में संडीला नाम का एक नगर है, जो रेल्वे स्टेशन और तहसील तथा परगने का मुख्य स्थान है । यह स्थान लखनऊ से एकतीस मील पश्चिमोत्तर में स्थित है । संभव है इसके आसपास का प्रदेश पहले शाण्डिल्य देश कहलाता हो और बाद में उसकी राजधानी मात्र उस नाम का वाच्य बन गई हो जैसा कि कोसला आदि में बना है । शालिशीर्ष ( सालिसीस) - इस गाँव के उद्यान में कटपूतना व्यन्तरी Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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