Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 451
________________ ३९४ में कहीं था । विजयवर्धमान- — यह उद्यान वर्धमानपुर के समीप था । विजयपुर — इसके पास नन्दनवन नामक उद्यान था । जहाँ अशोक यक्ष का मंदिर था । तत्कालीन राजा वासवदत्त और राज्ञी कृष्णा थी । भगवान् महावीर ने राजकुमार सुवासव को यहाँ पर श्रावक और कालान्तर में साधु बनाया था । श्रमण भगवान् महावीर विजयपुर — उत्तर बंगाल में गंगा के किनारे पर अवस्थित आज कल का विजयनगर ही होना चाहिये जो एक बहुत प्राचीन नगर है । इसके आसपास का प्रदेश पहले पुण्ड्र देश के नाम से प्रसिद्ध था । विदेह -- गंडक नदी का निकटवर्ती प्रदेश, विशेष कर पूर्वी भाग जो तिरहुत नाम से प्रसिद्ध है, पहले विदेह देश कहलाता था । इसकी प्राचीन राजधानी मिथिला और महावीर के समय की वैशाली थी । भगवान् महावीर इसी देश में अवतीर्ण हुए थे । विपुलपर्वत — राजगृह के पाँच पहाड़ों में से एक का नाम विपुल था । भगवान् महावीर के सैकड़ों श्रमणशिष्यों ने इस पर अनशनपूर्वक देह छोड़ कर स्वर्ग और निर्वाण प्राप्त किया था । विराट —— यह नगर मत्स्य देश की राजधानी थी । यहाँ पर पांडवों ने वर्षभर गुप्तवास किया था । जैनसूत्रों में इसका विराड नाम से उल्लेख है । जयपुर स्टेट में जयपुर से उत्तर-पूर्व बयालीस मील पर यह प्राचीन स्थान अब भी इसी नाम से प्रसिद्ध है । विसाखा - इस नगरी की अवस्थिति के बारे में विद्वानों में अनेक मतभेद हैं । किसी के मत से महावीर के समय में अयोध्या ही विशाखा कहलाती थी । कोई आज कल के लखनऊ को प्राचीन विशाखा बताते हैं । चीनी यात्री हुएनसंग कौशाम्बी से पाँच सौ मील की दूरी पर विशाखा बताता है । हमारे मत से विशाखा नगरी कोशल देश में अयोध्या के पास ही कहीं थी । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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