Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 456
________________ ३९९ विहारस्थल-नाम-कोष था ऐसा निर्णय हुआ है। सानुलट्ठिय ग्राम-इस गाँव के बाहर भगवान् महावीर ने भद्र, महाभद्र और सर्वतोभद्र प्रतिमापूर्वक ध्यान किया था जिसकी स्वर्ग के इंद्र तक ने प्रशंसा की थी । सानुलट्ठिय अर्थात् सानुयष्टिक गाँव कहाँ था यह कहना कठिन है, पर अनुमान किया जा सकता है कि इस स्थान का दृढ़ भूमि में होना संभव है जो प्राचीन कलिङ्ग के पश्चिमीय अंचल में थी । सालकोष्ठक चैत्य—यह उद्यान मेंढियगाँव के पास था जहाँ पर महावीर का समवसरण हुआ था और व!व्याधि को मिटाने के लिये रेवती के यहाँ से औषधि मँगाकर सेवन की थी । साहजनी—यह नगरी उत्तर भारत में कहीं थी । इसके बाहर देवरमण नामक उद्यान था जहाँ अमोघ यक्ष का मंदिर था । तत्कालीन राजा का नाम महचन्द्र था । भगवान् महावीर ने यहाँ पर यहाँ के सुभद्र सार्थवाह के पुत्र शकटदारक के पूर्वभवों का निरूपण किया था । सिन्धुदेश-जैन सूत्रोक्त साढ़े पचीस आर्य देशों में सिन्धु-सौवीर का नाम भी संमिलित है। वैदिक धर्म के सैद्धान्तिक ग्रन्थ बौधायन में सिन्धुसौवीर अस्पृश्य देश कहा गया है और वहाँ जानेवाले ब्राह्मण को फिर संस्कार के योग्य बताया है । बौद्ध ग्रन्थों में गान्धार और कांबोज राज्यों के उल्लेख किये गये हैं पर सिन्धु-सौवीर की वैसी चर्चा नहीं की । इससे पाया जाता है कि उस समय सिन्धु में सर्वप्रथम धर्मप्रचार महावीर ने ही किया था । भगवान् महावीर ने वहाँ पधार कर राजा उदायन को जैन प्रव्रज्या दी थी यह तो प्रसिद्ध ही है पर उसके बाद भी जैन श्रमणों के इस देश में विहार होते ही रहे हैं, ऐसा छेदसूत्रों के प्राचीन भाष्यों तथा टीकाओं से सिद्ध होता है । महावीर के समय में सिन्धु और सौवीर का एक संयुक्त राज्य था । बाद में सौवीर जुदा पड़ा और आधुनिक पंजाब का दक्षिणी भाग सिन्धु में संमिलित हुआ । आज कल सिन्धु 'सिन्ध' नाम से प्रसिद्ध है और कच्छ (जो पूर्व काल में सौवीर कहलाता था) तथा पंजाब के बीच में फैला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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