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कर छोड़ा था ।
तोसलिगाँव हमारे अभिप्राय से गोंडवाना प्रदेश में था । मौर्यकाल में गंगुआ और दया नदी के संगम के मध्य में तोसली एक बड़ा नगर रहा है । यह तोसली ही प्राचीन तोसलिगाम हो तो भी आश्चर्य नहीं है ।
श्रमण भगवान् महावीर
थूणागसंनिवेस (स्थूणाकसंनिवेश ) यह संनिवेश गंगा के दक्षिण तट पर था । राजगृह जाते समय गंगा उतरने के बाद महावीर ने यहाँ पर ध्यान किया था ।
दक्षिणकोशल—– विन्ध्याचल के दक्षिण तरफ का गोंडवाना प्रदेश पहले दक्षिणकोशल कहलाता था । किसी के मत से विदर्भ देश, जो आजकल बराड़ नाम से प्रसिद्ध है, इसका भी पहले दक्षिणकोशल में समावेश होता था ।
दक्षिणब्राह्मणकुण्डपुर — ब्राह्मणगाँव का दक्षिणी भाग वहाँ ऋषभदत्त ब्राह्मण जमीनदार रहता था । विशेष के लिये 'ब्राह्मणकुण्डपुर' शब्द देखिये ।
दक्षिणवाचाला --- इस वाचाला से महावीर कनकखल आश्रम होकर उत्तरवाचाला गये थे । विशेष के लिये 'उत्तरवाचाला' शब्द देखिये ।
दशार्ण - भोपाल राज्य सहित पूर्व मालव प्रदेश पहले दशार्ण देश कहलाता था । मौर्यकाल में इसकी राजधानी चैत्यगिरि में और उसके पिछले समय में विदिशा में अर्थात् भिलसा में थी । जैन सूत्रों में इस देश की गणना आर्य देशों में की है और इसकी राजधानी का नाम मृत्तिकावती लिखा है । मृत्तिकावती वत्सभूमि के दक्षिण में प्रयाग के दक्षिण के पहाड़ों में अवस्थित थी । भगवान् महावीर ने दशार्ण देश के राजा दशार्णभद्र को श्रमणधर्म की प्रव्रज्या दी थी । बाद के समय में भी दशार्ण देश जैन-धर्म के प्रचार का केन्द्र रहा है ।
दशार्णपुर- दशार्ण देश की राजधानी मृत्तिकावती और पिछले समय की राजधानी विदिशा का कहीं कहीं दशार्णपुर के नाम से उल्लेख हुआ है । दूतिपलाश चैत्य - वाणिज्यग्राम के पास इस नाम का उद्यान था,
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