________________
२४०
श्रमण भगवान् महावीर जगह जगह पुण्डरीक उगे हुए हैं । उन सब के बीच झील के मध्यभाग में एक बहुत बड़ा पुण्डरीक है जिसके पुष्पों की सुगन्ध और सौन्दर्य अद्वितीय है ।
पूर्व दिशा से एक पुरुष झील के पास आया और तट पर खड़ा हो उस पुण्डरीक को देख कर बोला - " मैं कुशल और उद्योगी पुरुष हूँ । मैं मार्ग-गमनशक्ति का जाननेवाला हूँ। मैं अभी इस पुण्डरीक को उखाड़ डालूँगा ।" वह झील में उतर कर आगे बढ़ने लगा । ज्यों-ज्यों वह आगे चला त्यों-त्यों जल और दलदल में फँसता गया । आखिर ऐसे गहरे पानी और कीचड़ में फँसा कि न वह पुण्डरीक तक पहुँचा और न लौट कर किनारे ही आने पाया ।
दक्षिण दिशा से एक दूसरा पुरुष उस झील के किनारे आया और पुण्डरीक की तरफ देख कर बोला - " यह पुरुष कुशल और परिश्रमी नहीं । यह अज्ञानी मार्ग से अनभिज्ञ होने से फँस गया । पर मैं वैसा नहीं । मैं पुरुष हूँ । मुझे इसका मार्ग मालूम है । अभी मैं इस पुण्डरीक को उखाड़ डालूँगा ।" वह झील के भीतर उतरा और पुण्डरीक को उखाड़ने चला, पर पहले पुरुष की ही तरह वह भी गहरे जल और दलदल में फँस गया । न वह कमल तक पहुँचा, न वापस लौट कर किनारे पर ही आया ।
I
पश्चिम दिशा से एक तीसरा पुरुष झील के निकट आया और तट पर चढ़कर पुण्डरीक तथा फँसे हुए पुरुषों की तरफ दृष्टि करके बोला“अफसोस ! ये दोनों ही पुरुष अज्ञानी निकले । न इन्हें मार्ग का ज्ञान है, न उद्यम करना ही जानते हैं । जिस प्रकार ये पुण्डरीक को उखाड़ना चाहते हैं, उस तरह यह नहीं उखाड़ा जाता । मैं बुद्धिमान् और प्रतिभासंपन्न हूँ । अभी जाकर इसे उखाड़े देता हूँ ।" वह जल के भीतर उतरा और पहले दो पुरुषों की ही तरह गहरे जल में पहुँचने पर दलदल में फँस गया । न वह कमल तक पहुँचा और न लौट कर किनारे पर ही आ सका ।
उत्तर दिशा से एक चौथा पुरुष आया और झील के किनारे खड़ा होकर पुण्डरीक तथा दलदल में फँसे हुए तीनों पुरुषों की तरफ देखकर
Jain Education International
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org