Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 417
________________ ३६० श्रमण भगवान् महावीर देखिये । अबाध (अबाहा)-भगवतीसूत्रोक्त सोलह देशों में से एक का नाम अबाध था । यह देश भारत के मध्यप्रदेशों में था । अंबसाल चैत्य (आम्रसाल चैत्य)-आमलकल्पा के निकटवर्ती उद्यान का नाम । इस उद्यान में भगवान् महावीर का समवसरण हुआ था । अमोघदर्शन-पुरिमताल नगर के समीपवर्ती एक उद्यान का नाम । अयोध्या-फैजाबाद से छ: मील पूर्वोत्तर में प्राचीन अयोध्या थी । महावीर के समय में अयोध्या का स्थानापन्न साकेत नगर था । अवन्ति-वत्स देश के दक्षिण में अवन्ति का राज्य था । इसकी राजधानी उज्जयिनी थी । महावीर के समय में उज्जयिनी में चण्डप्रद्योत का राज्य था । चण्डप्रद्योत की पट्टरानी शिवादेवी और अंगारवती प्रमुख अन्य रानियाँ श्रमण भगवान् महावीर के धर्मशासन को माननेवाली थीं । चण्डप्रद्योत भी महावीर का प्रशंसक था । अस्थिकग्राम (अट्ठियग्राम) यहाँ पर शूलपाणि यक्ष के चैत्य में भगवान् ने वर्षाचातुर्मास्य किया और उपसर्गकारी यक्ष को शान्त किया था । अस्थिकग्राम विदेह जनपद में अवस्थित था । इसके समीप वेगवती नदी बहती थी । भगवान् मोराक संनिवेश से यहाँ आये थे, और यहाँ से फिर मोराक होकर आप वाचाला की तरफ पधारे थे । अहिच्छत्रा-अहिच्छत्रा बरेली जिला में बरेली से बीस मील पश्चिम की ओर है । आजकल के रामनगर के समीप पूर्वकाल में अहिच्छत्रा थी । एक समय यह नगरी उत्तरपाञ्चाल की राजधानी थी । जैनसूत्रों के लेखानुसार अहिच्छत्रा कुरु-जांगल की राजधानी थी ।। आमलकल्पा (आमलकप्पा)-बौद्धग्रन्थोक्त बल्लिय राज्य की राजधानी 'अलकप्प' ही आमलकल्पा समझनी चाहिये । यह स्थान पश्चिमविदेह में श्वेताम्बी के समीप था । आमलकल्पा के बाहर अंबसाल चैत्य में महावीर का समवसरण हुआ था, जहाँ महावीर ने सूर्याभदेव के पूर्वभव का निरूपण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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