Book Title: Shraman Bhagvana Mahavira
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 422
________________ विहारस्थल-नाम-कोष ३६५ पाञ्चाल की तरफ उत्तर भारत में कहीं रहा होगा ऐसा हमारा अनुमान है । एकजंबूचैत्य-उल्लुकातीर नगर के उद्यान का नाम जहाँ महावीर का समवसरण हुआ था और इन्द्र ने महावीर से देवागमन संबन्धी प्रश्न किया था । कनकखल (आश्रमपद) यहाँ पर भगवान् को चण्डकौशिक सर्प ने डसा था । आपने उस क्रूर दृष्टिविष सर्प को बोध देकर यहाँ पंद्रह दिन तक ध्यान किया था । यह आश्रमपद श्वेताम्बिका नगरी के समीप था । कनकपुर (कणगपुर) इस नगर के श्वेताशोक उद्यान में वीरभद्र यक्ष का स्थान था । यहाँ के तत्कालीन राजा का नाम प्रियचंद्र और रानी का सुभद्रादेवी था । राजा के पुत्र युवराज का नाम वैश्रमणकुमार और युवराजपुत्र का नाम धनपति था । भगवान् पहली बार यहाँ पधारे तब धनपति के पूर्वभवों का वर्णन करके उसे श्रमणोपासक बनाया और दूसरे समवसरण में धनपति को श्रमणधर्म की प्रव्रज्या दी थी । __ कयलिसमागम (कदलीसमागम)--भद्दिल नगरी का वर्षाचातुर्मास्य समाप्त होने पर बाहर पारणा करके भगवान् कदलीसमागम पधारे थे । कयलिसमागम मगध के दक्षिण प्रदेश मलयभूमि में कहीं होगा, क्योंकि भगवान् मलय की राजधानी भद्दिल नगरी से यहाँ होते हुए वैशाली गये थे । कयंगला (कचंगला)-पृष्ठचम्पा का वर्षाचातुर्मास्य समाप्त करके भगवान् कयंगला गये और दरिद्दथेर पाषंडस्थों के देवल में ठहरे थे । यह स्थान यदि अंगदेश में ही चम्पा से पूर्व की तरफ हो तब तो आजकल का कंकजोल हो सकता है । बौद्ध ग्रन्थों के आधार पर कई विद्वान् कंकजोल को ही कचंगला मानते हैं, जो संथाल परगना में है । परन्तु जैनसूत्रों के अनुसार कचंगला नगरी श्रावस्ती के समीप थी । कात्यायन स्कन्दक श्रावस्ती के निकटवर्ती इसी कचंगला के छत्रपलास चैत्य में महावीर के शिष्य बने थे । कर्णसुवर्ण-मुर्शिदाबाद जिला में भागीरथी के दक्षिण तट पर जहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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