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गणधर मंडिक की दीक्षा ६४-६७, देवलोकसिद्धि और मौर्यपुत्र की दीक्षा ६७-६९, नरकगतिसिद्धि और अकम्पिक की दीक्षा ६९-७०, पुण्यपाप विषयक शंकानिरास और अचलभ्राता की दीक्षा ७०-७१, भौतिकवाद का निरसन तथा मेतार्य की दीक्षा ७१, मोक्षविषयक शंकानिरास और प्रभास की दीक्षा ७२, मध्यमा के समवसरण में ब्राह्मणों की दीक्षायें और संघस्थापना ७३, राजगृह की ओर प्रस्थान और उपदेश ७४, मनुष्यत्व की दुर्लभता ७५, धर्मश्रवण की दुर्लभता ७५, सत्यश्रद्धा और संयमवीर्य की दुर्लभता ७५-७६, मुनिधर्म के महाव्रत ७६, गृहस्थधर्म के द्वादशव्रत ७७ ।
चौदहवाँ वर्ष ७९, विदेह की ओर विहार और ऋषभदत्त तथा देवानन्दा की दीक्षा ७९-८० ।
पंदरहवाँ वर्ष ८१, कौशाम्बी के चन्द्रावतरण चैत्य में समवसरण, जयन्ती के प्रश्नोत्तर और दीक्षा ८२-८६ ।
सोलहवाँ वर्ष ८६, कालविषयक परिभाषा ८६-९० ।
सत्रहवाँ वर्ष ९०, वीतभयपत्तन का राजा उदायन ९०, चम्पा से वीतभयपत्तनगमन ९०-९१, स्थलीप्रदेश में श्रमणों को आहार पानी का कष्ट ९१ ।
अठारहवाँ वर्ष ९२, पोग्गल परिव्राजक की प्रव्रज्या ९२-९३, चुल्लशतक का श्राद्धधर्म-स्वीकार ९४ ।
उन्नीसवाँ वर्ष ९४, राजगृह में २३ श्रेणिकपुत्रों तथा १३ श्रेणिकरानियों की दीक्षायें ९४, आर्द्रकगोशालक संवाद ९५-९८, आर्द्रकमुनि का शाक्यपुत्रीय भिक्षुओं के साथ संवाद ९८, आर्द्रक की ब्राह्मणों के साथ चर्चा ९९-१००, आर्द्रक का सांख्यसंन्यासियों को उत्तर १००, आर्द्रक का हस्तितापसों के साथ वाद १०१, आर्द्रकमुनि द्वारा पाँच सौ चोरों को प्रतिबोध और हस्ति का शान्त होना १०१ ।।
बीसवाँ वर्ष १०१, आलभिया में समवसरण, ऋषिभद्र प्रमुख
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