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तपस्वी-जीवन नहीं देते इसलिये अब मैं आपके साथ न चलूँगा ।' भगवान् शान्त रहे ।
भगवान् क्रमशः वैशाली पहुंचे और लोहे के कारखाने में वास किया । दूसरे दिन एक लोहार जो छ: महीने की लंबी बीमारी से उठा था, कारखाने में काम पर गया तो उसे पहले-पहल भगवान् के दर्शन हुए । लोहार इस परममंगल को भी अज्ञानवश अमंगल मान कर हथौड़ा लेकर उन्हें मारने के लिए दौड़ा । परन्तु उसके हाथ पाँव एकदम स्तब्ध हो गए ।
वैशाली से भगवान् ग्रामाक संनिवेश की ओर गये । ग्रामाक के उद्यानस्थित बिभेलक यक्ष ने आपकी बहुत महिमा की ।
ग्रामाक से आप शालिशीर्ष पधारे और उसके बाहर उद्यान में कायोत्सर्ग ध्यान लगाया ।
माघ महीने की कड़ी सर्दी में भगवान् खुले शरीर ध्यान कर रहे थे कि वहाँ कटपूतना नामक एक व्यन्तर देवी आई और भगवान् को देखते ही वह द्वेषवश जल उठी । क्षणभर में उसने परिव्राजिका का रूप धारण किया और बिखरी हुई जटाओं में पानी भरभर कर भगवान् के ऊपर छिड़कने लगी और उनके कंधो पर चढ़ कर धूनती हुई हवा करने लगी । इस भीषण और असाधारण उपसर्ग से भी भगवान् अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए ।
__कटपूतनाकृत घोर उपसर्ग को धीरज और क्षमापूर्वक सहते हए भगवान को 'लोकाऽवधि ज्ञान उत्पन्न हुआ और उससे आप लोकवर्ती समस्त रूपी द्रव्यों को हस्तामलकवत् जानने और देखने लगे । अन्त में महावीर की धीरज और क्षमाशीलता के आगे कटपूतना ने अपनी हार मानी और क्रोध को शान्त कर भगवान् की पूजा की । ___शालिशीर्ष से भगवान् ने भद्दियानगरी की तरफ विहार किया और छठा वर्षावास आपने भदिया में ही किया ।
गोशालक भी छ: महीने तक अकेला घूम-फिरकर शालिशीर्ष में आकर फिर भगवान् के साथ मिल गया । भद्दिया के इस चातुर्मास्य में भी आपने चातुर्मासिक तप और विविध योगासन तथा योगक्रियाओं की साधना
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