Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 8
________________ वल्लभीपुर और तक्षशिला आदि स्थानों के विद्यापीठों का काफी उल्लेख मिलता है । वे विद्यापीठ आज के विश्व विद्यालयों के स्थान में थे । दस-दस हजार छात्रों का रहना, पन्द्रह सौ शिक्षकों का पढ़ाना, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक आदि अनेक विषयों का उच्च-कोटि का ज्ञान कराना यह उन विद्यार्प ठों का कार्यक्षेत्र था। किन्तु चरित्रनिर्माण का कार्य, जो कि वाल्यावस्था से होना आवश्यक है, वह तो उन आश्रमों में ही होता था । इन आश्रमों की संख्या भारतवर्ष में सैकड़ों की नहीं, सहस्रों के परिमाण में थीं । इतिहासकारों का कथन है कि, जब अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना अधिकार जमाया, उस समय केवल बंगाल में अस्सी हजार (८०,०००) आश्रम थे । कहा जाता है कि प्रत्येक चारसौ (४००) मनुष्यों की बस्ती के ऊपर एक-एक आश्रम था । आज भी बंगाल के किस-किसी ग्राम में ऐसे आश्रम का नमूना मिलता है । जिसको 'बंगीय-भाषा' में "टोल" कहते हैं। ये आश्रम किस प्रकार से चलाये जाते थे, कौन चलाते थे, कहां तक विद्यार्थी रहते थे इत्यादि आवश्यकीय बातों का उल्लेख करना इसलिए जरूरी समझ रहा हूँ कि, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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