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हमारा रक्षण, हमारी धार्मिकता, हमारी अर्थ संपत्ति सभी दूसरों के आर्धन रही, और सो भी ऐसे लोगों के आधीन रही, जिनका ध्येय हम से विपरीत, जिनकी संस्कृति हमसे विपरीत, बल्कि संक्षेप से यही कहना चाहिए कि चरित्र-निर्माण के साथ में संबंध रखने वाली किंवा मानव जीवन की सफलता से संबन्ध रखने वाली, सभी बातें हमसे विपरीत ! एक संस्कृति जीवन में भौतिकवादको - जड़वाद को प्रधानता देती है, और दूसरी संस्कृति (भारतीय संस्कृति) आध्यात्मिकवाद को । एक भोग की उपासिका है, तो दूसरी त्याग की, संयम की। एक स्वार्थसिद्धि के लिए दूसरे का सर्वनाश सिखाती है, तो दूसरी, दूसरे के सुख के लिए स्वार्थ का भी बलिदान सिखाती है । इस प्रकार दोनों संस्कृतियों का संघर्षण ही हमारे देश के पतन का कारण हो रहा है । जिन महानुभावों के ऊपर चरित्र-निर्माण और संस्कृति - रक्षण की विशेष जवाबदारी है वे प्रायः भारतीय संस्कृति से विपरीत संस्कृति में पले पोसे होने के कारण, हमारे देश के लिये जो बातें बुरी हैं - पतन के कारणभूत हैं, उन्हें भी प्रोत्सा
न दे रहे हैं ।
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