Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 23
________________ ( २० । विद्यार्थियों के पढ़ाने के विषय इतने अधिक और निरर्थक हैं, जिनके भार से विद्यार्थी की बुद्धि का, मस्तिष्क का कचुम्बर ( चूर्ग) हो जाता है । खास करके उन विद्यार्थियों के लिए यह वस्तु अक्षम्य मानी जाती है जो कि प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में पढ़ते हैं; छोटी उम्र के हैं । यह बात विचारणीय है। प्राचीन पद्धति के अनुसार रटन (कण्ठाग्र करने की) पद्धति का आजकल विरोध किया जा रहा है। परन्तु इसके बदले में विषयों और ग्रन्थों का भार इतना बढ़ गया है कि जिससे विद्यार्थी और पालक दोनों को मानसिक एवम् आर्थिक कष्ट उठाना ही पड़ता है। इसलिए शिक्षण के नव-निर्माण में छोटे से लेकर बड़ों तक के शिक्षण क्रम में इस बात पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है । होना तो यह चाहिए कि अमुक कक्षा तक के सभी छात्रों को एक समान शिक्षण देने के पश्चात् छात्रों की अपनी-अपनी अभिरुचि, बुद्धि की प्रेरणा और संयोगों को देख करके इच्छित विषय में उनको विकसित बनाने की अकूलता करनी चाहिए । ऐसा करने से, और ऐसी अनुकूलताएँ प्रदान कर देने से, वे अपने-अपने विषयों में सम्पूर्ण-दक्ष हो सकते हैं ।आधुनिक छात्र 'खंड-खंडशः पाण्डित्यम' प्राप्त करने से एक भी विषय में काफी दक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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