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( १६ ) यद्यपि वर्तमान समय में विद्यालयों और महाविद्यालयों के साथ बाहर के विद्यार्थियों के लिए प्रायः छात्रा. लय ( होस्टल ) बने हैं. परन्तु-चरित्र निर्माण के लिए वे उपयोगी नहीं हैं । बाहर के विद्यार्थियों को रहने की अनुकूलतामात्र के वे छात्रालय हैं । मेरा आशय गुरुकुल जैसे छात्रालयों से है । किसी प्रकार के भेद-भाव न रखते हुए, शिक्षालयों में पढ़ने वाले सभी छात्रों के लिए, एकएक आदर्श-पुरुष की देख-भाल में अमुक-अमुक संख्या में विद्यार्थियों को रखने का प्रबन्ध होना चाहिए । ऐसा होने से माता पिता के किंवा वाह्यजगत् के कुसंस्कारों से वे बच जायेंगे, आपस में भ्रातृभाव बढ़ेगा, छोटे-बडे. की भावना दूर हो जायगी, और एक ही गुरु-नेता के नेतृत्व में उनका आदर्श-जीवन बनेगा । निस्सन्देह, उनका जीवन सकुचित न रहे, इसलिए उनके आमोद-प्रमोद के शारीरिक-विकास और बौद्धिक विकास के साधन भी रखे जाने चाहिए । आधुनिक विद्यार्थियों का कोई गुरु नहीं है, उनका कोई आदर्श नहीं है, उनका कोई संयोजक नहीं है, ऐसा जो आरोप लगाया जाता है यदि वास्तव में सत्य भी है, तो यह दूर हो जायगा।
३-तीसरा विषय है विद्यार्थियों के पढ़ाने के विषयों का । आजकल आमतौर से कहा जाता है कि
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