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विनय आदि गुण अवश्य होने चाहिए, तथा उन्हें चौर्य, घूस, वीड़ी, सिगरेट इत्यादि वाह्य व्यसनों का त्याग करना चाहिए जो प्रथमदर्शन में ही दूसरों पर प्रभाव डालते हैं ।
एक बात और भी कर दूं । आज समस्त भारत में ऐसी अनेक संस्थाएँ चल रही हैं जो प्रजा की - जनता की - सहायता से चन्ती हैं, शिक्षालयों के साथ साथ छात्रालयों को भी रखती हैं और गुरुकुल पद्धति पर शिक्षण तथा बाल कों के चरित्रनिर्माण का कार्य करती हैं । ऐसी संस्थाओं को सरकार को का की सहायता देकर आगे बढ़ाना चाहिए । वस्तुतः देखा जाय तो शिक्षा प्रचार के साथ, चरित्र निर्माण के कार्य में ऐसी संस्थाएँ सरकार का बहुत कुछ बोझा हलका करती हैं । ऐमी संस्थाएँ, स कार की ओर से चलाने में जो खर्चा करना पड़े, उससे अधे खरचे में, यदि वही कार्य हाना हो, तो सरकार को ऐसे कार्य को अवश्य उत्तरेज़न देना चाहिए। शिक्षण और चरित्र निर्माण के कार्य में जनता का और शिक्षण प्रेमियों का इस प्रकार का सहकार, यह सचमुत्र ही अत्यन्त प्रशंसनीय कार्य समझा जा सकता है । बेशक, ऐसी संस्थाएँ सरकार की नीति के अनुसार साम्प्रदायिकता का विष फलाने वाली, और राज्य की बेवफा नहीं होनी चाहिएँ । स्वतत्र भारत में इस प्रकार जनता और सरकार के सहयोग से
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