Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 32
________________ (२६ ) रहें हैं ।" वेतन कम मिलता हो, कुटुम्ब का पोषण न होता हो, किन्तु इन बातों का 'गुरुत्व' के साथ क्या सम्बन्ध है ? जुआ खेलते समय खर्च की कमी नहीं मालूम होती, नित्य सिनेमा देखते समय पैसे की तंगी का भान नहीं होता, बार बार होटलों में जाकर के निरर्थक खर्च करते समय पैसों की कमी नहीं मालूम होती, विद्यार्थियों को पढ़ाने के समय 'चरित्र निर्माण के समय, दिल में यह सोचना कि पढ़ें तो पढ़ें, न पढ़े तो भाड़ में जायँ, सरकार वेतन कम देती है, मँहगाई अपार है, कुटुम्ब का पूरा खर्च होता नहीं, हम क्यों पढ़ावें ? पढ़ना होगा तो व्य शन देंगे हमको; पास होना होगा तो मुंहमाँगे पैसों पर पास करा देंगे” यह कहां तक उचित है ? जिन विद्यार्थी और विद्यार्थिनियों के चरित्र निर्माण की हम बातें करते हैं, उनके गुरुत्रों की प्रायः ऐसी दशा है । अभी कुछ दिनों पहले मध्यभारत शिक्षा विभाग के संचालक (डायरेक्टर) प्रसिद्ध शिक्षण शास्त्री और मनोविज्ञान के प्रखर अभ्यासी श्रीमान् झा महोदय ने उज्जैन के अपने एक भाषण में कहा थाः___"नवीन समाज की रचना में राजनीतिज्ञों की अपेक्षा शिक्षकों का अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है, और यदि वे इसके महत्त्व को नहीं समझते और नवरचना में अपना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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