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( २२ ) जरूर है । परिणाम यह होता है कि प्रारम्भ में जो कच्चा पन रह जाता है, वह ठेठ तक चालू रहता है । मैंने ऐसे हिन्दी 'विशारद' और 'रत्न' उत्तीर्ण हुए महानुभावों के पत्र देखे हैं, जिनके अक्षर साफ सुथरे नहीं; इतना ही नहीं, हस्व-दीर्घ की भी भूलें बहुत पाई गई। इसका कारण यही है कि प्रारम्भ से ही यह कच्चापन रहा हुआ होता है इसलिए पाठ्यक्रम की पुस्तकें और उनका अनुक्रम इस प्रकार से होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों का ज्ञान रद्ध हो जाय और वे भविष्य में किसी को 'किन्तु'–कहने का कारण न हो सके।
पाठ्य-पुस्तकों के चुनाव में कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना आवश्यक है, जो मेरे नम्र मत के अनुसार निम्नप्रकार से है :
(१) संसार के सारे पदार्थ तीन विषयों में विभक्त किये जा सकते हैं । हेय, ज्ञेय और उपादेय । त्यागने योग्य, जानने योग्य और आचरण करने योग्य । पाठ्य-ग्रन्थों में इन तीनों विषयों का स्पष्टीकरण होना चाहिए, जिससे कि विद्यार्थी किसी प्रकार की भ्रान्ति में न रहें और किसी विषय के लिए व्यर्थ झगड़ा न करें।
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