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( २६ ) बोलचाल की भाषा सिखाई जाती है। बालक बड़े विनोद के साथ में नेत्र और कर्गेन्द्रिय द्वारा, हम जो सिखाते हैं, उसे शुद्ध उच्चारण के साथ, सीख लेते हैं । न तो प्रत्येक को अला २ पाठ देने की आवश्यकता रहती है और न रटने की ही । मेरा विश्वास है कि थोड़े समय में ये बच्चे शुद्ध-उच्चारण के साथ अपने घर में अथवा हर किसी व्यक्ति के साथ हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत और अंग्रेजी में भी बात-चीत कर सकेंगे।
इस लिए मेरा अनुरोध है कि हमारे बाल-मन्दिरों, शिशुमन्दिरों में इस प्रकार भाषा-ज्ञान के लिए इस पद्धति से शिक्षण अवश्य दिया जाना चाहिए।
मुझे आशा है कि पाठ्य-ग्रन्थों किंवा पाठ्यक्रम के लिए, जो मैंने ऊपर सूचना लिखी हैं, उनपर शिक्षा प्रेमी और शिक्षाधिकारी महानुभाव अवश्य ध्यान देंगे।
५-अब इस लेख को पूर्ण करने के पूर्व एक प्रधान बात की तरफ पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ । यद्यपि यह निर्विवाद सिद्ध बात है कि हमारी भारतीय प्रजा में पीढ़ी दर पीढ़ी से संस्कारों की मलिनता चली आई है। शुद्ध-गृहस्थाश्रम प्रायः नहीं रहा है । इस लिये हमारे बालकों में चरित्र निर्माण के
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