Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 28
________________ ( २५ ) और साथ-साथ वे यह भी जान सकें कि इनमें कौन सी कलाएँ हेय, ज्ञेय तथा उपादेय हैं ? (६)-पाठ्य-रचना में बुनियादी शिक्षण का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए। मौण्टिसरी पद्धति से बालशिक्षण का जो प्रचार हो रहा है. वह हमारे शिशुओं के चरित्र-निर्माण के लिए बहुत ही उपयोगी है, किन्तु मध्यम और निर्धन स्थिति की जनता के लिए यह शिक्षण आर्थिक दृष्टि से असह्य होने की शिकायत प्रायः लोगों में सुनी जाती है । इसलिए इसे सरल और अल्पव्ययी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साथ, मेरी नम्र संमति से, इसी बुनियादी शिक्षण के साथ में भाषा शुद्धि का प्रयोग भी सम्मिलित किया जाय, तो वह अधिकाधिक लाभप्रद हो सकता है । अर्थात् कम से कम तीन वर्ष से अधिक उम्र के शिशुओं को अक्षरज्ञान नहीं होते हुए भी. मात्र मौखिक इशारे से व्यावहारिक बातचीत में संस्कृत-हिन्दी आदि सिखाना चाहिए । अभी हमारे विद्यालय के अन्तर्गत चार से आठ वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए 'नूतन बाल शिक्षण शाला' नामक एक विभाग खोलकर कार्य प्रारम्भ किया गया है। इन छोटे बच्चों को भारतीय प्राचीन 'श्रौत' अथवा 'दर्शन' पद्धति से हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में व्यावहारिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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