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क्या करना चाहिए ?
१ - विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के लिए, जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ, वातावरण शुद्ध न किया जाय तब तक कोई भी प्रयत्न, जैसा चाहिए, वैसा सफल नहीं होगा । इसलिए चरित्र निर्माण में जो २ विघातक बातें हमारे देश में प्रचलित हों, ऐसी बातों को समूल नष्ट करना चाहिए | जैसे कि 'सिनेमा' शृंगार रसपोषक पुस्तकें, समाचारपत्रों में छपने वाले वीभत्स-विज्ञापन, मासिक साप्ताहिक आदि पत्रों में छपने वाले बीभत्स चित्र, आदि जो २ बातें चरित्र को पतित करने वाली हों, उन्हें सरकार को चाहिए कि, बन्द कर दे। अभी २ ऐसा सुनने या पढ़ने में आया है कि सरकार ने अमुक उम्र तक के बालकों को 'सिनेमा' देखने का प्रतिषेध किया है, किन्तु विष तो बिष ही होता है, छोटों के लिए, और बड़ों के लिए भी । जब हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि बड़ों के गुण अवगुण का प्रभाव छोटों पर भी पड़ता है तो फिर जिस विष की छूट बड़ों को दी जाती है, उस विष का प्रभाव छोटों पर नहीं पड़ेगा यह कैसे माना जा सकता है ? इसके अतिरिक्त मनोविज्ञान के सिद्धान्तानुसार, निषेध, भी कभी अधिक प्रेरणोत्पादक होता है । जिस चीज का किसी को, खास
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