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( १४ ) कर लिया। यहां तक कि आज उसे छोड़ना मुश्किल हो गया है । जब बड़े २ लोगों की यह दशा है, तब फिर इन विद्यार्थियों की तो बात ही क्या करें ?
___ कहने का तात्पर्य यह है कि उचित या अनुचित किसी भी प्रकार से जो बातें भली या बुरी हम एक दूसरे में देखते हैं, वे किसी न किसी की देन हैं। इसलिए मेरा नम्र मत है कि, हमारेलाखों-करोड़ोंबालक-बालिकाओं युवक-युवतियों का 'चरित्र-निर्माण' करना है तो हमारे वर्तमान ढांचे को आमूल परिवर्तन करना होगा । भले ही इसके लिए समय लगे, भले ही उसके लिये कितना ही स्वार्थ-त्याग करना पडे. ।
यह कार्य इसलिए भी अधिक कठिन मालूम होता है कि, चारों आश्रमों की श्रेष्ठता का मूल कारण जो गृहस्थाश्रम है, वही इस समय प्रायः छिन्न-भिन्न और पतित हो गया है । ऐसे असंस्कारी, झूठ और प्रपश्च में ओत-प्रोत, जिनमें ईमानदारी का नामोनिशान नहीं, अन्याय के द्रव्य से उदरपोषण करने वाले, गृहस्थाश्रम के नियमों का पालन न करने वाले, बालक को जन्म देने के अतिरिक्त, उनके प्रति अपना कर्तव्य नहीं समझने वाले, भाषाशुद्धि को भी न समझने वाले माता-पिताओं ने छः, सात वर्षों
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