Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 15
________________ ( १२ ) विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण : मुझे तो यहाँ हमारी शाला, विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थी तथा विद्यार्थिनियों के चरित्र-निर्माण के विषय में कुछ कहना है । क्योंकि देश की, समाज की और वास्तविक मानवधर्म की भावी उन्नति का आधार उन्हीं के ऊपर है । वे ही सच्चे नागरिक बन कर भारतवर्ष को, जैसा पहले था, दुनियाँ का गुरु बना सकते हैं । और उसका सर्व आधार उन्हीं के 'चरित्र - निणि' पर रहा हुआ है । शिक्षण, यह तो चरित्र - निर्माण के साधनों में से एक है। हमारा मुख्य ध्येय तो चरित्र-निर्माण का है। 'बी० ए०' हों चाहे न हों 'एम०ए० ' 'एल० एल० बी० ' हों चाहे न हों 'पी० एच० डी० ' 'डाक्टर' 'कलेक्टर' 'एडिटर' 'ओडिटर' 'कन्डक्टर' बेरिस्टर, मास्टर, मोनीटर, हों चाहे न हों; हमारा प्रत्येक छात्र सच्चा नागरिक और हमारी प्रत्येक बहन सच्ची मातादेवी बननी चाहिए। जिन महानुभावों पर हमारे इन भावी उद्धारकों के, देवियों के जीवन-निर्माणकी, सच्ची नागरिकता की जबाबदारी है, उनको बहुत गंभीरता पूर्वक, सोचसमझ करके एक नवीन शिक्षण के क्षेत्र का निर्माण करने की आवश्यकता है। मैं यह समझता हूँ कि यह कार्य अति कठिन है । सहसा परिवर्तन करने लायक वस्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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