Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ ( ११ ) स्वार्थ सिद्धि के लिए उनका खून हैं । अरे, अपनी तक किया जाता है, यह संस्कृति कहां से आयी ? जहां हमारे खान-पान में भक्ष्य - अभक्ष्य का विचार किया जाता था, पाप को पाप समझा जाता; वहां आज अहिंसा, सत्य और प्रेम के नारे लगाते हुए - महात्मा गांधी जी के शिष्य होने को दावा करते हुए - सभाओं में महात्मा गांधी जी की अहिंसा, सत्य और प्रेम पर तालियां पिटवाते हुए भी मांसाहार छूटे नहीं; शराब छूटे नहीं; अण्डे छूटे नहीं; कोट, पतलून, टाई, कालर छूटे नहीं; सिगरेट छूटे नहीं; अर्थात साहेबशाही छूटे नहीं; यह किसका प्रताप है ? संक्षेप में कहा जाय तो — चरित्र निर्माण की पुकार करते हुए भी, चरित्र निर्माण के विघातक हमारा खुद का आचरण हो बल्कि, चरित्र निर्माण की विघातक प्रवृत्तियों को ही उत्त जन दिया जाय, इससे चरित्र निर्माण की सिद्धि कभी सिद्ध हो सकती है क्या ? विशेष दुःख की बात तो यह है कि जो बातें हमारी भारतीय संस्कृति से विपरीत हैं- हानिकारक हैं — हानि प्रत्यक्ष दिखाई दे रही है, फिर भी उस पाश्चात्य संस्कृति की देन को हम अच्छा समझ कर, दूसरों से भी अच्छा मनवाने का प्रयत्न करते हैं । यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जा सकता है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36