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( १५ ) की उम्र तक अपने बालकों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जो बुरे संस्कार डाले हैं-डालते हैं, उन्हें मिटाकर नवीन संस्कार और नया ही आदर्श चरित्र-निर्माण हमें करना है । इसलिए भी मैं यह कार्य अधिक कठिन समझता हूँ।
___ कुछ भी हो, मानव जाति के लिए कोई कार्यअशक्य नहीं है । साहस, दृढ़प्रतिज्ञा, निरन्तर परिश्रम और धैर्यपूर्वक किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं हो सकता । साठ-साठ वर्षों की घोर तपस्या ने भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त कराई। पिछले तीन वर्षों में भी जो कुछ हुआ है, वस्तुतः देखा जाय तो कम नहीं है । जो कुछ अशान्ति दुःख और न्यूनता देखी जाती है वह तो कुछ लोगों के लोभ, ईष्या, द्वष, अनुभव-हीनता, स्वार्थसिद्धि और जीवन की आदर्शिता के अभाव के ही कारण है । यदि ये बातें न होती तो, तीन वर्षों में ही भारत-वर्ष सच्चा स्वर्ग बन जाता।
फिर भी हमें निराशा छोड़कर हमारी पाठशाला, विद्यालय, महा विद्यालय आदि शिक्षण संस्थाओं में अध्ययन करने वाले विद्यार्थी और विद्यार्थिनियों के चरित्रनिर्माण के लिए प्रयत्न अवश्य करना चाहिए ।
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