Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 11
________________ ( ८ ) विद्यापीठः ऐसे आश्रमों से लाभ उठाने के पश्चात् , जो उच्चकोटि की भिन्न २ विषयों की विद्या प्राप्त करना चाहते थे, वे लोग उन विद्यापीठों में सम्मिलित होते थे, जिनका संक्षेप में मैंने उल्लेख ऊपर किया है। आध्यात्मिक भावनायुक्त, सुन्दर चरित्र-निर्माण होने के बाद, मनुष्य कहीं भी अथवा किसी भी कार्यक्षेत्र में उतरे, उसके पतन होने की सम्भावना बहुत कम रहती है । कहा जाता है कि, इन विद्यापीठों में अध्यापन का कार्य प्रायः बौद्ध एवं अन्य साधु महात्मा करते थे । इन विद्यापीठों के संरक्षक बड़े बड़े राजा महाराजा थे । इनको चलाने के लिए कई गांवों की आवक होती थी । जिससे न तो विद्यापीठों के संचालकों को आर्थिक-चिन्ता होती थी और न विद्यार्थियों को विद्याध्ययन के लिए द्रव्य का बोझ उठाना पड़ता था । पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव सैकड़ों वर्ष पहले की बातें अब तो मात्र शास्त्र और भूतकालीन इतिहास की बातें रह गई हैं । समय का परिवर्तन हो गया । सदियों से हमारा देश विभिन्न संस्कतियों के आधीन रहा, हमारी विद्या, हमारी संस्कृति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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