Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman Author(s): Vidyavijay Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala View full book textPage 6
________________ "आचार्य देवो भव," "अतिथिदेवो भव," "धर्मञ्वर" "सत्यम् वद" इत्यादि । शिक्षण का क्षेत्र पवित्र क्यों ? मानव को सच्चा मानव बनाने के लिए ही हमारा शिक्षण,शिक्षण का कार्य करता था । ऐहिक-सुख तो उसके अन्तर्गत था । वह अनाय प ही मिल जाता था । भौतिक सुखों का लक्ष्य भारतीय-शिक्षण में नहीं था, फिर भी भारतीय प्रजा उन सुखों - वंचित भी नहीं रहती थी, क्योंकि आध्यात्मिकता-आत्मिकशक्ति--एक ऐसी चीज है जिसके आगे कोई भी सिद्धि हस्त त हुए बिना नहीं रहती, इसीलिये भारतवर्ष में शिक्षण को सत्र से अधिक पवित्र क्षेत्र माना है। विद्यागुरु का महाव प्राचीन काल में विद्या, विद्यागुरु और विद्यार्थी, इस त्रिपुटी की एकता होती थी । बिद्यार्थी विद्या के उपार्जन में विद्या-गुरु को एक महत्व का स्थान मानता था। विद्या की प्राप्ति में विद्या-गुरु की कृपा और आशीदि को ही प्रधान कारग मानता था । और इसी कारण से उनके प्रति अनन्य श्रद्धा और भक्ति रखता था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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