Book Title: Shikshan Aur Charitra Nirman
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Granthmala

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Page 7
________________ ( ४ ) गुरु के गुण शिष्य में आना, यह आवश्यक था । गुरु की कृपा के सिवाय यह कैसे हो सकता है ? यह भारतीय संस्कृति थी। यही कारण था कि 'गुरुकुल वास' आवश्यकीय समझा जाता था । उपनिषदों और जैनागमों में ऐसे 'गुरुकुलवास' का बहुत महत्व बताया गया है। "विद्या विनय से प्राप्त होती है" यह हमारे देश की श्रद्धा का एक प्रतीक रहा है। विनय-हीन विद्यार्थी की क्या दशा होती है, इसका सुन्दर चित्रण जैनों के उत्तराध्ययन-सूत्र के प्रथम-अध्ययन में पाया जाता है । विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण की यही प्राथमिक भूमिका है। प्राचीन-शिक्षण-पद्धति में इसका प्राधान्य था । प्राचीन शिक्षण संस्थाएँ___उपनिषद् और जैनागमों में प्राचीन शिक्षणपद्धति को जो वर्णन पाया जाता है , उसमें गुरुकुल, अथवा आश्रमों का काफी वर्णन आता है । प्राचीन काल में शिक्षग की जो संस्थाएँ प्रचलित थीं, उनमें मुख्य आश्रम थे । आठ वर्ष की उम्र से बालकों के शिक्षण और चरित्र-निर्माण का कार्य ऐसे ही आश्रमों में प्रारम्भ होता था । यद्यपि इतिहासों में विद्यापीठों का वर्णन भी आता है, जिनमें नालन्दा, मिथिला, बनारस, विजयनगर, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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