Book Title: Shatrunjay Giriraj Darshan in Sculptures and Architecture
Author(s): Kanchansagarsuri
Publisher: Aagamoddharak Granthmala

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Page 252
________________ श्रीशत्रुंजय गिरिवरगता लेखाः ले० १२८ ख० व० आदो पकमंदिरोपरि लेखः ॥ स्वस्ति श्रीजहांगीर शाहिबकृत यशबहुमान- – स्वस्तिश्रीजयमंगलाभ्युदयाय श्रीशत्रुंजयाष्टमोद्धारसारशृंगार - चतुर्द्वार-श्रीयुगादिदेवविहारपुरः प्रवरहारानुकार - श्री द्वितीय जिनवरनिश्रारप्रासादः || प्रासाद प्रशस्तिरियम् ॥ संवत् १६७५ मिते वैशाख सुदि १३ शुक्रे ओसवालज्ञातीय - श्रीमदहम्मदावादवास्तव्यनव्यनव्यभव्यकारणियतरणिय - प्रसवेन रचितविसर - भान्डशालिक – कुलालंकार - प्रवरायहरितिलकलसेमा भार्या मूली पुत्र कमलसी भार्या कमलादे पुत्र जखराज भार्या नरबाई पुत्ररत्न सा० सईआकेन भार्या पुहती पुत्र चिरं रहिया सारपरिवारसहितेन श्रीअजितनाथाबिवं चैत्यकारितं प्रतिष्ठितं च तत् ॥ श्रीमहावीरराजाधिराजमानाविच्छिन्नपरंपरा या तचांद्रकुलीन .... लाडल - नवाकुलप्रतापभापनोपमान-श्री कोटीगणाभरण - श्रीवन्नशाखातिशायिप्रद्योतन - श्री उद्योतनसू रि- श्रीमदर्बुदाच लोपरीविहितखाण....... सानिध्य-श्रीसीमंधरसोधितश्रीसूरिमंत्रवर्णसमाम्नाय श्रीवर्धमानसूरी - श्रीमद्- अणा हिलपत्तनाधिप - श्रीदुर्लभ. . चैत्यवासियत्यामास....... पक्षे स्थापिता वसतिमार्गदीपक - श्री खरतर बिरुदवर - श्रीजि - नेश्वरसूरि-संवेगरं'.... . करण प्रवा.... श्रीविनय चंद्रसूरि-यतिश्रीतिहुअणद्वात्रीशिकाविधान- प्रगतिरितं स्तंभनकाभिधानपार्श्वनाथ - प्रधानप्रासादसमर्थि - नवांगीवृत्तिरचकान - निकषपट्टे श्रीअभयदेवसूरि........कंदकुदालाभ - पं दत्त... समाचारि - विचारचंचुबंधुरश्रीजिनवलभसू रिचतुषष्टियोगिनि - विजयपंच नंददशसु रि- क्रमागतश्रीभद्रसू रिसंतान - विषमदुः पमारक - प्रसरपारावारलहरिभरनिमग्न- सक्रियोद्धारणसमुवा ० वंदाततोपित वि... ति श्रीमदकवल्प्रदत्तयुगवरपदवीधर - कुमतितिमिरर्पितदुर्मनमथनोधुर—प्रतिवर्षाढीयामारिसिंचन श्रीजिनचंद्रसूरि - चउरनर - राजनंदि व....... विहित साध्य विदारणप्रदमिता || ले० १२९ पंचानां पांडवानां मंदिरे युधिष्ठिरः ॥ संवत् १७८८ वर्षे माघ सुदि ६ शुक्रे श्रीस्वरतरगच्छे शा० कीका पुत्र दुलीचंद कारितं च युधिष्ठिरभूनिबिंबं प्रतिष्ठितं उपाध्याय श्री दीपचंदगणिभिः || श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ॥ ले० 5० १३० पंचानां पांडवानां मंदिरे भीमः । संवत् १७८८ वर्षे माघसुदि ६ शुक्रे खरतरगच्छे शा० कीका पुत्र दुलीचंद कारितं श्रीमीममू निबिंबं प्रतिष्ठितं उपाध्याय श्री दीपचंद गणिभिः । शुभं भवतु । श्रीरस्तु । ( तदनुसारे अर्जुन - सहदेव - नकुल - कुंता - द्रौपदीनां लेखा: ) (३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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