Book Title: Shatrunjay Giriraj Darshan in Sculptures and Architecture
Author(s): Kanchansagarsuri
Publisher: Aagamoddharak Granthmala
View full book text ________________
श्रीशत्रुजय-गिरिराज-दर्शनम्
विजयस(सू )र(रि) (3) --------(4) ---------- (5) ------- (6) -------- (7) -------- (8) श्रीमालीज्ञाति------- (9) ------- (10) ------- (11) ------
ले० ५६३, ६३ ॥ (1) मघदा० घेतसी----- ले० ५६४, न० ६४ ॥ (1) —तुः सहदेव(2)स्य श्रेयसे सा० मी(3)माकेन कारितं
ले० ५६५, न० ६५ ॥:1) एर्द या सं० १२९१ ------(2) ठ० श्री चंडपाच्च--- -(3) कुमारादेवी-- -(4) महं० श्री तेज------(5)---- --(6)--------7)------
ले० ५६६, न०६६ ॥ (1) सबंत १९४२ना माहा सुद २ श्रीवीजार(2)वाला वखारीया दलिचंद वेणीचंदनी (3) भार्जा बई गलाब श्रीआदिनाथबिंब (4) स्थापित्तं
ले० ५६७, ६७ ॥ (1) एर्ण II संवत १६२० वर्षे वैशाख शुदि (2) २ दिने गंधारवास्तव्य प्राग्वाशव्य श्री(3)परबत सुत व्यो० फोका सु० व्यो० वज(4)आ स्वकुटुंबेन युतः श्रीसेनंजयो(5)परि देवकुलिका कारापिता । श्री त(6)य(पा)गच्छे विबुधशिरोमणि श्रीधिजय(7)दानसू रिप्रसादात(त्) ॥ ॥ श्री : ॥ * ॥
ले० ५६८, न० ६८ ॥ (1) संवत १८९२ ना वरषे वईशाकु सूद ३ दने वार शुक्ररे दने देरीनी प्रतिष्टा करी छे (2) तपगळे श्री भावनगरवाला दोसी अभेचंद जेठानी दीकरी बाई अवले(3) श्री देरी करावी छे श्रीपारसनाथी मूलनायकजी श्रीशांतिनाथजी थाषी छे
ले० ५६९, न० ५९ ॥ (1) ॥ एर्द ॥ संवत १६७६ वर्षे वैशाख सित ६ शुक्रे लघुशाखीय श्री(2)श्रीमालीज्ञातीय मंत्रि जीवा भार्या बाई रंगाई सुत मंत्रि --वास वाछाकेन भार्या बाइ गंगाई प्रमुककुटुंबयुतेन श्रेष्ट(ष्ठि) (4) भणसाली शिवजी प्रसादात् स्वयं प्रतिष्ठापित श्रीविमलना(5)थदेवकुलं कारितं ॥ श्रीमत्तपागणगगनांगणगगनमणिस(6)मान भट्टारक श्रीविजयसेनसूरीश्वरपट्टालंकारभट्टारक (7) श्रीविजयदेवसूरीश्वरविजयिराज्ये ॥ यावद्देवगिरिर्भाति (8) यावत् शत्रुजयाचलः ॥ तावद्देवकुलं जीयात् । श्रीवाछाकेन कारितं ॥१॥श्रीः॥
(१०८)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334