Book Title: Shatrunjay Giriraj Darshan in Sculptures and Architecture
Author(s): Kanchansagarsuri
Publisher: Aagamoddharak Granthmala

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Page 322
________________ श्रीशचुंजय गिरिवरगता लेखाः १६४६ वर्षे मागसर (2) वदि १ सुकर- -(3) सा० (4) पनी ज(जा)तर(रा) सफल----(5) -------ज(जा)तरा सफल ले० ५४१, न० ४१ । बरगतलेखानन्तरलेखः ॥ (1) संवत १६४५ वर्षे ज ----वद १३ गुरु----(३)-------(४)----(५) जात्र सफल--------- ले० ५४२, न० ४२ ॥ (१) संवत १६४३ वर्षे काती(2)सुदी २ दंने सा० ---(3)नदास सा० सासंग सा० (4) ---स------(5)----(6) तपागच्छे जण ६ जात्रा सफल ले० ५४३, न० ४३ ॥ (1) संवत् १६४२ वर्षे माह (2)-द १३ रवौ आस--- (3) --पंचोली जसा सा (4) —राम सा. कुका सा (5)----(6)(7)---- -- ले० ५४४, न० ४४ द्वारशाखे लेखोऽस्ति, न पठ्यते ॥ ले० ५४५, न०. ४५, नव्यटकादौ सव्यभागे आरासूरपाषाणे स्त्रीपुरुषश्रावको (1) संवत् १४४२ वर्षे माघ वदि १ बुधे खरतरग (2) च्छे साह तेजा सुत साह पुर—पुत्र ले० ५४६, न० ४६, गंधारीयाचतुर्मुखप्रासादे पश्चिमद्वारे सव्यद्वाहशाखे लेखः॥ (1) संवत् १६४८ वर्षे (2) चैत्र शुदि १५ दानि वा(3)र सोभे ॥ तपगछत(ति)ल(4)क समान महारक श्री ही (5) रविजयसूरीश्वर (6) गुरुग्यो नमः ॥ तत्प-(7)ट(ट्ट) प्रभाकर आचार्ज(य) (8) श्रीविजयसेनसू-(9) रीश्वरगुरुभ्यो नमः (10) तत(त् ) गच्छे मो(म)होपाध्या (11) य श्रीविमलहर्षगुरु (12) भ्यो नमः ॥ तत सीस (13) मुनि प्रेमविजयनी (14) जात्रा ४०४ कीधी (15) परदक्षणा ४ (16) दीधी डुंगर पाष(ख) (17) ती ॥ छहरीनि १० (18) जात्रा कीधी ॥ पं (19) डित श्री पुन्यहर्ष (20) नो भाई मुनि प्रेम (21) विजयनी जात्रा (22) कल्याणमस्तु ॥ (23) शुभं (भ)वती (तु) इति भ(24)दें। ले० ५४७ न० ४७, तत्रैवासव्ये गवाक्षगतो लेखः ॥ (1) संवत् १६७० वर (से) (2) वैरारव वद १ पं० (3) रतनजी लालजी (4)-----जात्रा (5) करी तपागच्छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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