Book Title: Shatrunjay Giriraj Darshan in Sculptures and Architecture
Author(s): Kanchansagarsuri
Publisher: Aagamoddharak Granthmala

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Page 266
________________ श्रीशत्रुजयगिरिवरगता लेखाः ।१ । सं० १६८२ मिते जेष्ट वदि १० शुक्र श्रीमदुपकेशवंशीय-श्रीजेसलमेरुवास्तव्य भा....शालि....सा पूनसी भार्या.... पुप्र रत्नश्रीमल्लभार्या धाधलदे पुत्र पवित्र धर्म ।२। तानघ संघवि विधिपूर्वक प्रतिष्ठापक लेखितागमभाण्डागार-विहित-साधर्मिकवात्सल्य संभारपर्या ....रूपभट्टारक यु० श्रीजिनराजसू रि............दश्रीशत्रुजय । ३ । तीर्थ........सत्तवाचतुर्विशति जिनेश्वरवरद्विपंचाशदन चतुर्दशशत गणधर पादुकालंकृत्य भूतपूर्व शिलाचतुप्क........ रमु....कारि संन्यवेशि ।१।.......करणपरायण श्रीलोद्रवापत्तन प्रवरजीर्णोद्धारविहारशंगारक-श्रीदिनमणिनामधधवा-गेघमहामहोत्सवरूपीरूपकनकमुद्र । समर्पण-सक्कारि....।२।...य संघपतिपदतिलकालंकारसुश्रावककर्तव्यधारीण सं. धाहरू नाम्ना भार्या नकादे पुत्र हरराज भा० हजा...द्वितीयपुत्र मेघराज सुतेन श्रीमद ला० १. पूर्वदिशवर्ति मारुदेवाजिनजिन ला० २. सो० पुंडरीक सिंहसेन प्रभूतग ला० ३. णधरः १७९ तेषाभिभाः पादुकाः ला० १. प्राग्वाटवंशीव सं० सोमर्जी सुत मंधाधिपरूप ला० २. रूपजी कारिताष्टमोधार-सप्राकार-चतुर्दार विला० ३. हारे प्रतिष्ठितं च श्रीमन्महावीरदेवाधिदेवाला० ४. विछिन्न-परंपरायात-श्रीकोटिकगणगगनांगणदिनमणिचांद्रकुलावचू (बू )ला चुडामणि वनीशाखानुसरणि श्रीमदुद्योत्तनसू रि सू रि सू रिभु--धक श्रीवर्ध मानसू रि-। ला० ५. ....सममुछेदक-खरतरविरुदप्रावक-श्रीजिनेश्वरसू रि-श्रीजिन चंद्रसू रि-नवांगी वृतिकारक-श्रीस्तंभनकाधीशपार्श्वनाथाति....श्रीमदभयदेवसू रिपट्ट....। ला० ६. पट्टायात-श्रीजिनभद्रसू रिसंतानीय–प्रतिबोधितदिल्लीपति-जलालदीन साहीश्रीमद्अकवरप्रदत्तयुगप्रधान-पदधारक पंचनह....शाधक....पाठीयामारिप्र....। (४९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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