Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 16
________________ विषय-सूची २६४ क्रम विषय पृष्ठ | क्रम विषय पृष्ठ भागहानि आदिका निरूपण २१० पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होनेका नियम २३९ ४७ गुणितकौशिक, गुणितघोलमान, ५९ आयु कर्मके द्रव्यप्रमाणकी परीक्षा क्षपितघोलमान और क्षपित रूप उपसंहारकी प्रपरूणा २४४ कौशिक जीवोंका आश्रय कर ६. आयु कर्मकी द्रव्यसे अनुत्कृष्ट पुनरुक्त स्थानोंकी प्ररूपणा २१६ । वेदनाकी प्ररूपणा ४८ त्रस जीव योग्य स्थानों सम्बन्धी ६१ द्रव्यसे जघन्य ज्ञानावरणवेदनाजीवसमुदाहारके कथनमें प्ररूपणा के स्वामीका स्वरूप (सूत्र ४८-७५) २६८ आदि ६ अनुयोगद्वार. २२१ ६२ द्वीन्द्रियादि अपर्याप्त जीवोंमें ४९ स्थावर जीव योग्य स्थानों उत्पत्तिवारों प्रमाण । २७० सम्बन्धी जीवसमुदाहारके कथनमें ६३ द्वीन्द्रियादि पर्याप्त जीवोंकी आयुप्ररूपणा आदि ६ अनुयोगद्वार २२३ स्थितिका प्रमाण २७१ ५० आयुको छोड़कर शेष दर्शनावर- ६४ निगोद जीवोंमेंसे मनुष्यों में उत्पन्न णीय आदि ६ कमौके उत्कृष्ट अनु हुए जीवोंके केवल सम्यक्त्व व स्कृष्ट द्रव्यकी प्ररूपणा संयमासंयमके ही ग्रहणकी योग्यआयु कर्मकी द्रव्यसे उत्कृष्ट वेदनाका ताका उल्लेख २७६ गर्भसे निकलने के प्रथम समयसे स्वामित्व २२५-२४३ ।। लेकर आठवाँके वीतनेपर संयम५१ महाबन्धके अनुसार ८ अपकर्षों ग्रहणकी योग्यताका उल्लेख २७८ द्वारा आयुको बांधनेवालोंके आयुः। | ६६ गर्भमें आने के प्रथम समयसे लेकर बन्धक कालका अल्पबहुत्व २२८ | आठ वर्षों के वीतनेपर संयमग्रहण५२ सोपक्रमायु जीवोंमें परभविक की योग्यता विषयक आचार्यान्तरआयुके बांधनेका नियम २३३ / का अभिमत और उसकी असंगति २७९ ५३ निरुपक्रमायु जीवों में परभविक ६७ गुणश्रेणिनिर्जराका क्रम २८२ __आयुका बन्धनविधान २३४ ६८ भिन्न भिन्न पर्यायों में उत्पत्तिके ५४ आठ व सात आदि अपकर्षों द्वारा आयु योग्य मिथ्यात्वकालका अल्पबहुत्व २८४ को बांधनेवाले जीवोंका अल्पबहुत्व ,, संयमकाण्डकों,संयमासंयम५५ योगयवमध्यके ऊपर रहनेका काण्डको, सम्यक्त्वकाण्डकों और कालप्रमाण कषायोपशामनाकी वारसंख्या २९४ ५६ चरम गुणहानिस्थानान्तरमें रहने ७० गुणश्रेणिनिर्जराका अल्पबहुत्व २९५ - का कालप्रमाण २३६ | ७१ उपसंहारप्ररूपणामें प्रवाह व अ. ५७ क्रमसे कालको प्राप्त हुये उक्त __ प्रवाह स्वरूपसे आये हुए उपदेशों जीवके पूर्वकोटि आयुवाले जल द्वारा प्ररूपणा अनुयोगद्वारका चर जीवों में उत्पन्न होने का नियम निरूपण बतलाते हुए आयुबन्धविषयक ७२ ज्ञानावरण सम्बन्धी अजघन्य व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रसे विरोधकी द्रव्यकी चार प्रकार प्ररूपणामें आशंका व उसका परिहार २३७ क्षपितकौशिकके कालपरिहानि .५८ उक्त जीवके अन्तमुहूर्तमें सब । द्वारा उक्त प्ररूपणा २९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orget

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