Book Title: Sangrahani Sutram
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 242
________________ संग्रहणी वृत्तिः गहणणं॥१॥"॥२४९॥२५०॥ उक्ता योनयोऽथ कुलसंख्याऽभिधातव्या, कुलानि च योनिप्रभवानि, तथाहि-यथैकस्मिन् छगणपिण्डे कृमीणां कीटानां वृश्चिकादीनां च बहूनि कुलानि भवन्ति, तथैकस्यामपि योनौ विभिन्नजातीयानि प्रभूतानि कुलानि, तत्र कस्मिन् जीवनिकाये कति कुलकोट्य इति सार्द्धगाथाद्वयेनाह ॥११३॥ 4-4XAMACCM एगिदिसु पंचसु बार सत्त तिअ सत्त अट्टवीसा य । विअलेसु सत्त अड नव, जलखहचउपयउरगभुअगे ॥ २५१ ॥ अद्धत्तेरस बारस, दस दस नवगं नरामरे नरए। बारसछवीस पणवीस, हुंति कुलकोडिलक्खाइ ॥ २५२ ॥ इगकोडिसत्तनवई, लक्खा सड्डा कुलाण कोडीणं । व्याख्या-पष्ठीसप्तम्योरथ प्रत्यभेदात् पञ्चानामेकेन्द्रियाणां पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायरूपाणां यथासंख्यं द्वादश सप्त त्रीणि सप्त अष्टाविंशतिश्च कुलकोटीनां लक्षाणि भवन्ति, तथा 'विगलेसु'त्ति द्वित्रिचतुरिन्द्रियरूपाणां त्रयाणां विकलेन्द्रियाणां कमात्सप्त अष्ट नव च कुलकोटिलक्षाणि, जलचरखचरचतुष्पदउरगभुजगानां पञ्चानां ॥११३॥ lain Education intamational For Privale & Personal use only www.jainelibrary.org

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